छत्तीसगढ़ पर्यटन : कबीरधाम जिले के प्रमुख पर्यटन क्षेत्र [Tourist Places in Kabirdham District]
कबीरधाम जिला में पर्यटन
कबीरधाम फणी नागवंशियों का क्षेत्र रहा है. पूर्व में कबीरधाम राजनांदगाँव का हिस्सा था, किन्तु 1998 में इसे पृथक् जिले का दर्जा प्राप्त हुआ. कबीरधाम का एक अलग ऐतिहासिक महत्व है. 1000 वर्ष पूर्व यह नागवंशियों की कार्यस्थली रहा है जिनके प्रमाण हमें भोरमदेव व मड़वा महल से प्राप्त होते हैं.
भोरमदेव (छत्तीसगढ़ का खजुराहो)
रायपुर जबलपुर राज्यमार्ग पर कवर्धा’ से 17-6 किलोमीटर पूर्व की ओर मैकल पर्वत श्रृंखला की लघु-उपात्यका में ग्राम ‘छपरी’ के निकट ‘चौरागाँव’ नामक गाँव में ‘भोरमदेव स्थित है. खजुराहो एवं कोणार्क की कला का संगम स्थल ‘भोरमदेव मंदिर’ है, जो ‘कबीरधाम’ से 17.6 किलोमीटर दूर स्थित है. 11वीं शताब्दी के अंत में (1089 ई. के आसपास) छठे नागवंशी शासक गोपाल देव द्वारा निर्मित यह पुरातत्वीय महत्व का मंदिर भारतीय संस्कृति एवं कला की उत्कृष्टता का परिचायक है. ‘भोरमदेव का मंदिर’ शिलाओं को तराशकर की गयी पच्चीकारी अर्थात् ‘नागर शैली’ की उत्कृष्टता का परिचायक है. भोरमदेव का मंदिर’ शिलाओं को तराशकर की गयी पच्चीकारी अर्थात् ‘नागर शैली’ का उत्कृष्ट उदाहरण है. इसलिये जग प्रसिद्ध ‘खजुराहो’ से इसकी तुलना करते हुए इसे ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ भी कहते हैं.
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‘भोरमदेव मंदिर’ पाँच फीट ऊँचे अधिष्ठान पर निर्मित है. गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है. कुछ विद्वानों द्वारा इसका नामकरण गोड़ देवता ‘भोरमदेव’ से सम्बद्ध किया जाता है. 18वीं शताब्दी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के प्रथम महानिदेशक ‘कनिंघम’ 1098 ई. में निर्मित भोरमदेव मंदिर सर्वप्रथम भोरमदेव पहुँचे. इसके सम्बन्ध में अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों का उल्लेख ‘कनिंघम्स आर्कियोलॉजिकल रिपोर्ट में मिलता है. भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के स्थापत्य एवं मूर्तिकला में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है. यह अपने मैथुन शिल्पांकन के लिए प्रख्यात है, यहाँ के शिल्प में विभिन्न काममुद्राओं में अनुरक्त युगलों का कलात्मक अंकन किया गया है. इसी कारण मंदिर को ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ कहा जाता है. वस्तुतः यह मंदिर चंदेल शैली अथवा नागर शैली में ही निर्मित है. भोरमदेव को ‘पर्यटन क्षेत्र’ घोषित किया जा चुका है, यह न सिर्फ देशी, बल्कि विदेशी पर्यटकों को भी आकर्षित करने वाला छत्तीसगढ़ का प्रमुख पर्यटन केन्द्र है.
मंडवा महल (पुरातात्विक, ऐतिहासिक, धार्मिक)
भोरमदेव से एक किलोमीटर दूर कबीरधाम मार्ग पर ‘मंडवा महल’ स्थित है. मंडवा महल को ‘दुल्हादेव’ भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि यहाँ एक ऐतिहासिक विवाह’ हुआ था. शिलालेख के आधार पर भी सिद्ध होता है कि एक नागवंशी राजा ने हैहयवंशी राजकुमारी से यहाँ विवाह किया था. इस मंदिर का निर्माण नागवंशी राजा रामचन्द्र देव द्वारा सन् 1349 में कराया गया था. इसके दो अंग हैं-मण्डप और गर्भगृह, ‘मंडवा महल’ की बाह्य भित्तियों पर चारों ओर 54 विभिन्न मैथुन आसन कृतियों से युक्त शिल्प प्रतिमाएँ हैं. इनमें खजुराहो और कोणार्क की दुर्लभ कला का अभूतपूर्व संगम देखने को मिलता है. आध्यात्मिक तथा ऐतिहासिक दृष्टिकोण से यह स्थान महत्वपूर्ण है.
छेरका महल (पुरातात्विक, ऐतिहासिक, धार्मिक)-
मंडवा महल से 1 किलोमीटर दूर तथा भोरमदेव मंदिर से 3 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण दिशा में छेरका महल’ स्थित है. वस्तुतः यह महल नहीं है, बल्कि शिव मंदिर है, 14वीं सदी के इस पूर्वाभिमुख मंदिर में केवल गर्भगृह है, जिसमें शिवलिंग स्थापित है. गर्भगृह से ‘छेरी’ (बकरी) के शरीर से आने वाली गंध निरन्तर आती है. ऐसा क्यों होता है, यह रहस्य है, जबकि वहाँ कोई बकरी नहीं है. भोरमदेव में महाशिवरात्रि के पावन पर्व एवं चैत्र सुदी तेरस के अवसर पर वर्ष में दो बार मेला लगता है.