छत्तीसगढ़ का प्राकृतिक विभाजन
- प्राकृतिक विभाजनछत्तीसगढ़ राज्य अपने आप में प्राकृतिक दृष्टि से भरपूरा राज्य है। यहाँ की मिटटी बहुत ही उपजाऊ है। यहां पर्वत पठार और मैदान क्षेत्रों के रूप इसका विभाजन किया गया है।
- छत्तीसगढ़ के प्राकृतिक विभाजन 4 भागों में किया गया है ,जिसके बारे में हम आगे पढ़ेंगे। “छत्तीसगढ़ का प्राकृतिक विभाजन ” को जानने के लिए इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढ़े।
छत्तीसगढ़ का प्राकृतिक विभाजन को चार भागों में बांटा गया है :
1. पूर्वी बाघेलखंड का पठार या सरगुजा बेसिन
2. जशपुर समरीपाठ का प्रदेश
3. छत्तीसगढ़ का मैदान या महानदी बेसिन
4. दण्डकारण्य प्रदेश
छत्तीसगढ़ का पठार [chhattisgarh ka pthar ka bhaugolik addhyayan]
राज्य का भौतिक प्रदेश अनेक भिन्नताएं लिए हुए है। इन प्रदेशों को भौतिक आधार पर चार भागों में विभाजित किया गया है
1) पूर्वी बघेल खण्ड का पठार
2) छत्तीसगढ़ का मैदान
3) पाट प्रदेश
4) दण्डकारण्य का पठार
महत्वपूर्ण बिंदु –
- भारत के संदर्भ में छत्तीसगढ़ प्रायद्वीपीय उच्चभूमि भू-आकृतिक प्रदेश के अंतर्गत आता है।
- छग का सर्वाधिक भौगोलिक क्षेत्र पठारों के अंतर्गत आता है।
- जैव भौगोलिक दृष्टि से छ.ग. राज्य दक्कन जैव क्षेत्र में आता है।
- छत्तीसगढ़, भारत के 15 कृषि जलवायु प्रदेशों के पूर्वी पठारी एवं पर्वतीय क्षेत्र में पाये जाते हैं।
(1) पूर्वी बघेलखण्ड का पठार या सरगुजा बेसिन
यह प्राकृत प्रदेश छत्तीसगढ़ की उत्तर में स्थित है। यह बघेल खंड के पठार का पूर्वी भाग है इसलिए इसे पूर्वी बघेलखंड का पठार कहते है। यह प्राकृतिक प्रदेश महानदी अफवाह तंत्र व गंगा नदी के अफवाह तंत्र के मध्य जल विभाजन करता है।
प्रतिशत : 16. 16
क्षेत्रफल : 21863 वर्ग किलो. मी.
विस्तार : कोरिया , सूरजपुर ,बलरामपुर , सरगुजा ,कोरबा और सरगुजा के पाट प्रदेशों को छोड़कर
औसत ऊँचाई : 300 –700 मी.
भू-गर्भिक बनावट : गोंडवाना शैल समूह व आर्कियन शैल समूह
खनिज ——– कोयला
ढाल —-उत्तर की ओर
ऊंची चोंटी —-देवगढ़ की पहाड़ी (1033 मी. )
विस्तार – कोरिया, सूरजपुर तथा बलरामपुर और सरगुजा के पाट प्रदेशों को छोड़कर
बनावट – गोंडगाना शैल क्रम (सरगुजा बेसिन)
खनिज – कोयला ( Coal)
परीक्षा हेतु मुख्य बिंदु :
- चांगभखार की पहाड़ी देवगढ़ की पहाड़ी , छुरी उदयपुर की पहाड़ी
- यह सोना बेसिन का भाग है। .
- प्राचीनतम नाट्य शाळा रामगढ की पहाडी में स्थित है। .
- हसदो नदी इन्ही पहाड़ी से निकलती है।
- प्रमुख नदिया –हसदेव , रिहन्द , कन्हार , गोपद , एवं बनास , है।
- कर्क रेखा- इस क्षेत्र के मध्य भाग से बलरामपुर , सूरजपुर , एवं कोरिया जिलेसे होकर गुजरती है।
- जशपुर प्रदेश के सबसे कम नगरीय जनसँख्या वाला क्षेत्र है।
चांगभखार देवगढ़ की पहाडी:-
- विस्तार – कोरिया (उत्तरी भाग में विस्तृत है।)
- ऊँची चोटी – देवगढ़ (1033 मी)
- देवगढ की पहाड़ियां छत्तीसगढ़ राज्य के बघेलखण्ड पठार भौतिक प्रदेश के अन्तर्गत आती है।
कैमूर पर्वत श्रृंखला –
- विस्तार – कोरिया
- विशेष – हसदो नदी का उद्गम स्थल
- कैमूर पर्वत श्रृंखला विध्याचल पर्वत श्रेणी का भाग है।
रामगढ की पहाड़ी – (सरगुजा में)
- यह सतपुड़ा पर्वत श्रेणी का भाग है।
- गुफाएं – सीताबेंगरा, जोगीमारा, लक्ष्मण बेंगरा।
- सीताबेंगरा – यहीं पर विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला स्थित है।
- जोगीमारा – मौर्य वंशीय सम्राट अशोक के शिलालेख प्राप्त हुए हैं। (पाली-भाषा एवं ब्राम्ही-लिपि)
- सीताकुण्ड – रामायण काल में जल संग्रहण हेतु।
- जोगीमारा की गुफा में देवदासी नृत्यांगना व देवदत्त नामक नर्तक की प्रेमगाथा का वर्णन है।
- महाकवि कालिदास ने इसी पहाड़ी में मेघदूतम् नामक पुस्तक की रचना की, जिसका छत्तीसगढ़ी
भाषा में रूपांतरण मुकुटधर पाण्डेय द्वारा किया गया।
सीता लेखनी की पहाड़ी:-
स्थिति – सूरजपुर
(2) छत्तीसगढ़ के मैदान (महानदी बेसिन) की धरातलीय संरचना
छत्तीसगढ़ का मैदान राज्य का ह्रदय प्रदेश है। धान का अधिक उत्पादन होने के कारन इसे धान का कटोरा कहा जाता है। छत्तीसगढ़ का मैदान उतर में सरगुजा रायगढ़ के पठार दक्षिण में बस्तर के पठार पश्चिम में माइकल पर्वत श्रेणी के मध्य स्थित है। . चरोवोर ऊँची भूमि से घिरा हुआ है। इसका क्षेत्रफल लगभग 68064 वर्ग किलो. मी. में है इस क्षेत्र क निर्माण मुख्यतः कडप्पा चट्टानों के अपरदन के फलस्वरूप हुआ है। इस क्षेत्र की ऊंचाई 150 -400 मीटर तक है छत्तीसगढ़ के मैदान का विस्तार बिलासपुर जांजगीर ,रायगढ़ ,राजनांदगाव , दुर्ग , रायपुर , धमतरी एवं महासमुंद जिले तक है।
प्रतिशत — 50. 34 %
क्षेत्रफल –68064 वर्ग की. मी.
विस्तार — बिलासपुर दुर्ग व रायपुर संभाग
औसत ऊँचाई — 150 -400 मीटर
भू -गर्भिक बनावट –कडप्पा शैल
खनिज — चुना ,डोलोमाइड
ढाल —-पूर्व की ओर
आकृति — पंखाकार
- विस्तार – छ.ग. का मैदान (बिलासपुर, रायपुर एवं दुर्ग संभाग)
- बनावट – कड़प्पा क्रम (अवसादी क्रम) की चट्टानों से
- खनिज – चूना पत्थर
- आकृति – पंखाकार/चापाकार
- महानदी के तटीय भाग को महानदी बेसिन या छग का मैदान कहते हैं। इस क्षेत्र में भूस्थलाकृतियां विद्यमान है।
विशेष —
- मैदानी प्रदेश होने के कारन यहाँ पहाड़ी क्षेत्र से अधिक तापमान होता हैं .
- यह मुख्यतःआर्कियन एवं कडप्पा युग के चट्टानों से बना है। .
- इस क्षेत्र में जलोट लालपिली मिटटी का विस्तार है।
- यहाँलोह अयस्क चुना पत्थर।, बाक्साइड ,अदि पर्याप्त मात्रा में मिलता है
- महानदी , शिवनाथ , हसदेव , मांड ,जोंक ,पैरी , सोढ़ुर ,अरपा , केलो ,आगर ,मनियारी ,लीलाझर , खारुन तांदुला , आदि इसी क्षेत्र नदिया है.
- महानदी धमतरी के निकट सिहावा पर्वत से निकलती है
- सबसे काम वनाच्छादन वाल क्षेत्र जांजगीर -चंपा इसी क्षेत्र में है
पेण्ड्रा लोरमी का पठार – (यह मैकल-श्रेणी का ही भाग है।)
- विस्तार – बिलासपुर, मुंगेली, कोरबा
- प्रमुख चोटी – पलमा चोटी- बिलासपुर (1080 मी) एवं लाफागढ़-कोरबा (1048 मी.)
छुरी उदयपुर की पहाड़ी –
- विस्तार – कोरबा, सरगुजा, रायगढ़
- विशेष रिहन्द नदी का उद्गम स्थल (सरगुजा)
मैकल श्रेणी – (आकृति – अर्द्धचंद्राकार)
- विस्तार – राजनांदगाँव, कवर्धा, लोरमी एवं पेण्ड्रा तक।
- ढाल (Slop) – पश्चिम से पूर्व की ओर (West to East)
- ऊँची चोटी बदरगढ़ की चोटी (1176 मी), कबीरधाम जिले में स्थित है।
- स्थिति – राज्य के पश्चिम दिशा में है।
- भाग – सतपुड़ा पर्वत का
- प्रभाव – मैकल श्रेणी के कारण कबीरधाम जिला वृष्टिछाया (Rain Shadow) क्षेत्र में आता है।
- जल विभाजक – शिवनाथ व वेनगंगा के मध्य यह श्रेणी ऊपरी महानदी बेसिन को ऊपरी नर्मदा से अलग करती है।
- वन – मुख्यतः सालवन (Sal Forest) के वन है।
बिलासपुर रायगढ़ मैदान :-
- विस्तार – बिलासपुर, जांजगीर चांपा, रायगढ़।
- ऊँची चोटी – दलहा पहाड़ (760 मी.) (अकलतरा, जांजगीर-चांपा)
सिहावा पर्वत – धमतरी –
- प्राचीन नाम – सुक्तिमती (महानदी का उद्गम स्थल, फरसिया नामक स्थल से)
- आश्रम – सप्तशृंगी ऋषि का
छाता पहाड़ – बलौदाबाजार
दुर्ग – सीमान्त उच्च भूमि
- विस्तार – डौंडीलोहारा (बालोद), अम्बागढ़ चौकी (राजनांदगांव)
- पहाड़ियाँ – दल्लीराजहरा, डोंगरगढ़ की पहाड़ी।
- विशेष – दल्लीराजहरा की पहाड़ी का विस्तार बालोद व कांकेर जिले में है जो खरखरा व तांदुला नदी के मध्य स्थित है स्थित है।
(3) पाट प्रदेश
यह उत्तर पूर्वी दिशा में स्थित है। . जो छोटा नागपुर का पठार का विस्तारित भाग है। ऊँचाई के आधार पर ये राज्य की सबसे ऊंचा प्रदेश है। लेकिन क्षेत्रफल केआधार पर राज्य का सबसे छोटा प्रदेश है इस प्रदेश की संरचना ऊचाई के साथ -साथ अपने पार्श्व क्षेत्र में सीढ़ी नुमा तल रूप में विधमान है।
प्रतिशत – 4. 59 %
क्षेत्रफल — 6208 वर्ग किलो मी.
विस्तार —— जशपुर , पूर्वी सरगुजा दक्षिण बलरामपुर , उत्तरी रायगढ़
भू गर्भिक बनवट — दक्कन ट्रेप
आकृति —– सीढ़ीनुमा
औसत ऊँचाई — 400 -1000 मीटर
खनिज —– बाक्साइड
ढाल —— दक्षिण पूर्व की ओर
- विस्तार – जशुपर तथा बलरामपुर और सरगुजा के पाट प्रदेश भाग
- बनावट – दक्कन ट्रेप
- खनिज – बॉक्साइड
- क्रम – पूर्व से पश्चिम की ओर – जमीर पाट > जारंग पाट > जशपुर पाट > मैनपाट
- भाग – छोटा नागपुर के पठार
- ढाल – दक्षिण – पूर्व की ओर
- सरगुजा बेसिन की संरचना में गोंडवाना क्रम की चट्टानें अधिक है।
- पठारी क्षेत्र के समतल ऊपरी भाग को ”पाट” कहते हैं। प्रमुख पाट प्रदेश निम्न है –
मैनपाट :- सरगुजा (छत्तीसगढ़ का शिमला)
- यह राज्य का सबसे ऊंचा भाग है।
- ऊचाई – 1152 मी
- माण्ड नदी का उद्गम स्थल (सरगुजा)
- सन् 1962 में तिब्बती शरणार्थियों (Tibetans inhabired) को बसाया गया था।
- टाइगर प्वाइट, इको प्वाइंट एवं मछली प्वाइंट आदि हिल स्टेशन एवं भू-कम्पित जलजली क्षेत्र स्थित है।
- सफेद मूसली की खेती की जाती है।
जशपुर पाट :- जशपुर स्थित।
- यह राज्य का सबसे बड़ा व लम्बा पाट प्रदेश है।
पंडरा पाट:- जशपुर में स्थित है जहां से ईब व कन्हार नदी का उद्गम होता है।
जारंग पाट :– बलरामपुर (सबसे बड़ा बॉक्साइट का भंडारण क्षेत्र)
सामरी पाट:- बलरामपुर
- चोटी गौरलाटा (1225 मी.)
- छ.ग. की सबसे ऊँची चोटी
- आकृति – सीढ़ीनुमा
जमीर पाट :– बलरामपुर, (बॉक्साइट का मैदान)
लहसुन पाट:- बलरामपुर
छत्तीसगढ़ के जल विभाजक पर्वत –
1. केशकाल पर्वत – महानदी व इन्द्रावती के मध्य।
2. मैकल पर्वत श्रेणी – शिवनाथ व वेनगंगा (महाराष्ट्र में बहती है।) के मध्य।
3. देवगढ़ की पहाड़ी – गोपद व रिहन्द के मध्य।
(4) दण्डकारण्य पठार
यह छत्तीसगढ़ के दक्षिण में स्थित है , हमारे प्रदेश का जनजाति बाहुल्य क्षेत्र एवं खनिज संसाधन की दृष्टिकोण से यह प्राकृतिक प्रदेश सर्वाधिक सम्पन है। गोदावरी नदी अफावह तंत्र का भाग है। इसकीऔसत ऊँचाई 600 मीटर के लगभग है दक्षिण के पठार में बस्तर ,दंतेवाड़ा , और कांकेर जिले आते है। इस क्षेत्र में बैलाडीला की पहाड़िया स्थित है जहा लोह अयस्क हेतू प्रसिद्द है।
प्रतिशत — 28. 91 %
क्षेत्रफल –39060 वर्ग की. मी.
विस्तार –बस्तर संभाग , दक्षिण राजनांदगाव
भू- गर्भिक बनावट –आर्कियन युगीन शैल तथा धारवाड़ शैल समूह
खनिज — लोह अयस्क
ढाल — दक्षिण की ओर
वन — साल
- विस्तार – बस्तर संभाग
- बनावट – धारवाड़ क्रम का शैल समूह
- खनिज – मुख्यतः लौह अयस्क
- राज्यों में- छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आन्ध्रप्रदेश एवं ओडिसा
- विशेष – खनिजों के भूमि के नाम से प्रसिद्ध
- नोट- दण्डकारण्य परियोजना – बस्तर में संचालित है।
विशेष :-
- छत्तीसगढ़ की सबसे ऊँची छोटी गौरलाटा (1225 मी. )सामरीपाठ में स्थित है। .
रावघाट की पहाड़ी
- विस्तार – कांकेर
- विशेष – लौह अयस्क क्षेत्र (भिलाई स्टील प्लांट को भविष्य में लौह आपूर्ति)
बस्तर का मैदान – बीजापुर एवं सुकमा में।
बैलाडीला पहाड़ी- दंतेवाड़ा
- चोटी नंदीराज (1210 मी)
- विशेष – सर्वोच्च किस्म का लौह अयस्क मिलता है।
- यहां से लौह अयस्क को विशाखापट्टनम बंदरगाह से जापान भेजा जाता है।
- छत्तीसगढ़ में सबसे पुरातन शैलों (Oldest Rock) से बना है।
बस्तर का पठार
- बस्तर एवं सुकमा क्षेत्र में ।
- इसके अंतर्गत झीरमघाटी (सुकमा) एवं दरभाघाटी (बस्तर) आते हैं।
अबूझमाड़ पहाड़ी
- विस्तार – नारायणपुर, बीजापुर
- सर्वोच्च किस्म के सागौन वनों से वनाच्छादित है। (खुरसेल घाटी)
- छत्तीसगढ़ में सर्वाधिक वर्षा होने के कारण इसे छत्तीसगढ़ का चेरापूंजी भी कहते हैं।
केशकाल घाटी
- विस्तार – कोण्डागांव
- इसे बस्तर का प्रवेश द्वार कहा जाता है। (12 मोड़ 5 किमी के अंतराल में)
- केशकाल घाटी को छत्तीसगढ़ का जल विभाजक पर्वत कहा जाता है जिसके कारण महानदी अपवाह
तंत्र उत्तर की ओर एवं इंद्रावती अपवाह तंत्र दक्षिण की ओर बहती है।
- तेलीन माता का मंदिर स्थित है।
- तेलीन घाटी – कोण्डागांव
- केशकाल घाट/तेलीन घाट – छत्तीसगढ़ बेसिन और बस्तर पठार के बीच सीमा बनाती है।
- गोदावरी नदी अपवाह व महानदी अपवाह।
विशेष:-
- इंद्रावती नदी की घाटी बस्तर के पठार को दो भागो में बांटती है उत्तर एवं दक्षिण।
- ये सर्वाधिक वर्षा वाला क्षेत्र है अबूझमाड़ में सबसे अधिक वर्षा होती है।
- इस क्षेत्र की नदियाँ – इंद्रावती , सबरी , कोटरी , डंकनी , शंखनी , नारंगी , गुदरा , नंदिराज , है
- जगदलपुर के निकट इंद्रावती की प्रसिद्द जलप्रपात चित्रकूट जलप्रपात बनती है।
- बस्तर को साल का द्वीप कहा जाता है
- यहां की मिटटी लाल रेतीली है जो कम उर्वर (उपजाऊ ) है।
- इस क्षेत्र का घड़वा या ढोकरा शिल्प काष्ठ शिल्प आदि लोक शिल्प के लिए विश्व विख्यात है।
आरीडोंगरी
- भानुप्रतापपुर तहसील क्षेत्र (कांकेर जिले) में स्थित है।
- यह लौह अयस्क के लिए प्रसिद्ध है।
गाड़िया पहाड़ (Gadhiya Hill) –
- कांकेर जिले में
- गढ़िया महोत्सव भी मनाया जाता है। (सितम्बर माह में)
अलबका पहाड़ी (Albaka HII)
- स्थित – बीजापुर
छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्वत , पहाड़ियां एवं उच्चावच स्थल व क्षेत्र –
पहाड़ियाँ /चोटी | ऊंचाइयां | क्षेत्र |
गौरलाटा | 1225 मीटर | सामरीपाट (बलरामपुर) |
नन्दीराज | 1210 मीटर | बैलाडीला (दंतेवाड़ा) |
बदरगढ़ | 1176 मीटर | मैकल श्रेणी (कवर्धा) |
मैनपाट | 1152 मीटर | सरगुजा |
अबूझमाड़ की पहाड़ियाँ | 1076 मीटर | नारायणपुर |
पल्लागढ़ की चोटी | 1080 मीटर | पेंड्रा-लोरमी की पठार (बिलासपुर) |
लाफागढ़ चोटी | 1048 मीटर | पेंड्रा-लोरमी की पठार (कोरबा) |
जारंग पाट | 1045 मीटर | बलरामपुर |
देवगढ़ | 1033 मीटर | कोरिया |
चागभखार की पहाड़ी | कोरिया | |
धारी डोंगर (शिशुपाल) | 899 मीटर | महासमुंद |
पेण्ड्रा लोरमी | 800 मीटर | बिलासपुर |
दलहा पहाड़ (Dalha Mountain) | 760 मीटर | अकलतरा (जांजगीर-चांपा) |
डोंगरगढ़ की पहाड़ी | 704 मीटर | मैंकल श्रेणी (राजनांदगाँव) |
दल्लीराजहरा | 700 मीटर | बालोद |
छुरी मतिरिंगा उदयपुर की पहाड़ियाँ | कोरबा, सरगुजा एवं रायगढ़ | |
जशपुर पाट | जशपुर | |
रामगढ़ की पहाड़ियाँ | सरगुजा | |
कैमूर पर्वत | कोरिया | |
सिहावा पर्वत (सुक्तिमति पर्वत) | धमतरी | |
आरी डोंगरी | भानुप्रतापपुर तहसील क्षेत्र में (कांकेर) | |
गाड़िया पहाड़ी | कांकेर | |
कुलहारी पहाड़ी | राजनाँदगाँव | |
मांझीडोंगरी | बस्तर | |
बड़े डोंगर | कोण्डागांव | |
छोटे डोंगर | नारायणपुर | |
अलबका की पहाड़ी | बीजापुर | |
सीता लेखनी की पहाड़ी | सूरजपुर | |
छाता पहाड़ी | बलौदाबाजार |
प्रारंभिक परीक्षा हेतु मुख्य तथ्य :
पठार
पठार ऊँचाईयों में पर्वतों से कम तथा मैदानों से अधिक ऊँचे होते हैं । सामान्यतया 5 सौ फीट से अधिक ऊँचे भाग को पठार कहते हैं । वस्तुतः इनकी मुख्य विशेषता यह है कि ये मैदानों की अपेक्षा थोड़े से अधिक ऊँचे होते हैं । पृथ्वी के संभवतः 33 प्रतिशत भाग पर पठार हैं ।
पठारों का निर्माण –
- किसी क्रिया के कारण पृथ्वी के एक बड़े हिस्से का अपने आसपास की तुलना में ऊँचा उठ जाने के कारण ।
- ज्वालामुखी के बाद लावा का अधिक मात्रा में एक स्थान पर जमा हो जाने के कारण ।
- पर्वत बन जाने के दौरान किसी कारण से उसी पर्वत का कुछ हिस्सा अधिक ऊपर न उठ पाये ।
- पर्वत जब घिसकर नीचा हो जाए ।
- हवा किसी स्थान पर लगातार मिट्टी के कणों को जमा करने लगे । आदि-आदि ।
कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य –
- तिब्बत विश्व का सबसे ऊँचा पठार है, जो समुद्र तल से औसतन 16 हजार फीट ऊँचा है ।
- तिब्बत का पठार क्षेत्र की दृष्टि से भी विश्व का सबसे बड़ा पठार है । इसका क्षेत्रफल 8 लाख वर्गमील तक है ।
- जम्मू-कश्मीर में हिम नदियों के जमाव से छोटे-छोटे पठार बनते हैं । इन पठारों को मर्ग कहा जाता है । सोजमर्ग और गुलमर्ग ऐसे ही पठार हैं ।
- गढ़वाल का पठार भी हिम नदी के निक्षेप से बना है ।
- विश्व के सबसे ऊँचे पठार अन्तरपर्वतीय पठार हैं ।
- पर्वतों की तलहटी पर स्थित पठार खड़ी पदीय पठार कहलाते हैं । इन पठारों के एक ओर ऊँचे पर्वत तो दूसरी ओर मैदान या समतल होते हैं । भारत का शिलाँग का पठार ऐसा ही पठार है।
- गुम्बदाकार पठारों की रचना ज्वालामुखी प्रक्रिया से होती है । छोटा नागपुर के पठार की रचना ऐसे ही हुई है ।
- समुद्र के तटों के साथ-साथ फैले पठार तटीय पठार कहलाते हैं । भारत का कोरोमण्डल तट तटीय पठार का अच्छा उदाहरण है ।
- तिब्बत का पठार सपाट पठार है ।संयुक्त राज्य अमेरिका का कोलेरेडो पठार मरुस्थलीय पठार का उदाहरण है । इसे युवा पठार ;ल्वनदह च्समजमंनद्ध भी कहा जाता है ।
- भारत में राँची का पठार जीर्ण या वृद्ध ;व्सक च्समजमंनद्ध पठार कहलाता है ।
- जीर्ण या वृद्ध पठार की पहचान उस पर उपस्थित पत्थर ‘मेसा’ से होती है । वस्तुतः जब नष्ट हो रहे पठारों पर कहीं-कहीं कठोर चट्टान के टुकड़े टीले के रूप में बचे रह जाते है, तो उन्हें मेसा या बूटा कहा जाता है ।
- जब वृद्ध पठार अकस्मात युवा अवस्था में आ जाते हैं, तो उन्हें ‘पुनर्युवनीत पठार’ कहा जाता है । राँची का ‘‘पार प्रदेश’’ ऐसा ही पठार है ।