तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय कोयंबटूर में बीमा बांँस (Beema Bamboo) से ‘ऑक्सीजन पार्क’ (Oxygen Park) का निर्माण

खबरों में क्यों?


  • हाल ही में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (Tamil Nadu Agricultural University-TNAU) के कोयंबटूर परिसर में बीमा बांँस (Beema Bamboo) से एक ‘ऑक्सीजन पार्क’ (Oxygen Park) का निर्माण किया गया है।

सी.जी.पी.एस.सी. मुख्य परीक्षा 2021 – प्रश्न पत्र 05, भाग 01 हेतु महत्वपूर्ण एडिटोरियल/सम्पादकीय/करेंट अफेयर


सी.जी.पी.एस.सी. मुख्य परीक्षा हेतु प्रमुख बिंदु:

बीमा बाँस के बारे में:

  • बीमा या भीमा बाँस (Beema or Bheema Bamboo) एक उच्च क्लोन (Superior Clone) है, जिसे बंबूसा बालकोआ (Bambusa Balcooa) जो कि बाँस की एक उच्च उपज देने वाली प्रजाति है, से प्राप्त किया गया है।
  • बाँस के इस क्लोन को पारंपरिक प्रजनन विधि (Conventional Breeding Method) द्वारा विकसित किया गया है।
  • इस प्रजाति को सर्वाधिक तीव्र गति से विकसित होने वाले पौधों में से एक माना जाता है। यह उष्णकटिबंधीय परिस्थितियों (Tropical Conditions) में प्रतिदिन डेढ़ फीट बढ़ता है।
  • इसे कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन (Carbon Dioxide Emissions) को कम करने हेतु सबसे अच्छा ‘कार्बन सिंक’ (Carbon Sink) माना जाता है।

बंबूसा बालकोआ:

  • बंबूसा बालकोआ एक बहुत बड़े तथा मोटे आवरण वाला गुच्छेदार बाँस (Clumping Bamboo) है, जो 25 मीटर की ऊँचाई और 150 मिलीमीटर की मोटाई तक बढ़ता है।
  • बंबूसा बालकोआ की लंबाई और मज़बूती इसे उद्योगों हेतु एक उपयोगी सामग्री बनाती है।
  • यह कम वर्षा में उत्पन्न होने वाली एक सूखा प्रतिरोधी प्रजाति (Drought-Resistant Species) है जो प्रति हेक्टेयर 100 मीट्रिक टन से अधिक पैदावार देती है।

महत्त्व:

स्थायी हरित आवरण: बांँस एक स्टराइल पौधा (Sterile plant) है, अर्थात् इससे बीज का उत्पादन नहीं होता है तथा यह कई सौ वर्षों तक जीवित रहता है तथा वृद्धि करता है। नतीजतन, बांँस की यह प्रजाति विशेष रूप से स्थायी हरित आवरण निर्मित करने में सक्षम है।

लंबे समय तक पुनः रोपण की आवश्यकता नहीं:

  • चूंँकि बांँस के पौधे को टिशू कल्चर के माध्यम से तैयार किया जाता है इस कारण इसका कल्म (बांँस का तना) ठोस हो जाता है जो स्वयं को विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल विकसित करता है।
  • प्रत्येक फसल चक्र के बाद यह फिर से बढ़ता है और दशकों तक इसके पुनः रोपण की आवश्यकता नहीं होती है।
  • विशेष रूप से पुष्प आने के समय घास या अनाज के पौधे का तना/कल्म खोखला होता है।
  • ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायक: इसके प्रकंद और जड़ इसे मज़बूती प्रदान करते हैं, इस कारण बांँस का पौधा प्राकृतिक आपदाओं का मज़बूती से सामना करने में सक्षम होता है तथा ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को कम करने में प्रमुख भूमिका निभाता है।

विविध उपयोग:

  • बांँस का कैलोरी मान कोयले के बराबर होता है। सीमेंट उद्योग में बांँस की प्रजाति का उपयोग बॉयलरों हेतु किया जाता है। कपड़ा उद्योग में कपड़े और वस्त्र बनाने हेतु बांँस के फाइबर का उपयोग किया जाता है।
  • विश्वेश्वरैया राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (Visvesvaraya National Institute of Technology- VNIT) नागपुर के विशेषज्ञ ‘बीमा’ बाँस और कॉयर (नारियल की जटा) से बने क्रैश बैरियर के डिज़ाइन पर काम कर रहे हैं।

बांँस से संबंधित सरकारी पहल:

बाँस क्लस्टर्स:

हाल ही में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास तथा पंचायती राज मंत्री द्वारा 9 राज्यों (मध्य प्रदेश, असम, कर्नाटक, नगालैंड, त्रिपुरा, ओडिशा, गुजरात, उत्तराखंड व महाराष्ट्र) के 22 बाँस क्लस्टर्स की शुरुआत की गई।

राष्ट्रीय बाँस मिशन (NBM):

  • बांँस क्षेत्र के संपूर्ण मूल्य शृंखला के समग्र विकास हेतु वर्ष 2018-19 में पुनर्गठित NBM का शुभारंभ किया गया और इसे हब और स्पोक मॉडल (Spoke Model) में लागू किया जा रहा है।
  • इसका उद्देश्य किसानों को बाज़ारों से जोड़ना है ताकि किसान द्वारा उगाए जाने वाले बांँस को तैयार बाज़ार मिल सके और घरेलू उद्योग को उचित कच्चे माल की आपूर्ति बढ़ाई जा सके।

बाँस को वृक्ष की श्रेणी से हटाना:

  • वर्ष 2017 में बाँस को वृक्ष की श्रेणी से हटाने हेतु भारतीय वन अधिनियम 1927 में संशोधन किया गया था।
  • परिणामस्वरूप कोई भी बाँस की खेती और व्यवसाय कर सकता है और इसकी कटाई करने तथा उत्पादों को बेचने हेतु अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती है।

छत्तीसगढ़ राज्य में बाँस वन, बाँस प्रसंस्करण केंद्र एवं बांस प्रशिक्षण केंद्र:

छत्तीसगढ़ में बाँस:

  • बाँस विपणन केन्द्र, रायपुर में 2010 में स्थापित।
  • छ.ग. में बांस वन का कुल क्षेत्रफल : 6556 वर्ग कि.मी.।
  • छ.ग. के कुल वन क्षेत्र में बांस वन क्षेत्रफल : 11%

छ.ग. में प्रमुख बाँस प्रसंस्करण केन्द्र:

1. चारामा (कांकेर)
2. बाँदे, भानुप्रतापपुर(कांकेर)
3. आमगाँव (सरसुजा)
4. कासोली (दंतेवाडा)
5. नोनीबिर्रा (कोरबा)
6. लालपुर (कर्वधा)

छ.ग. के प्रमुख बाँस प्रशिक्षण केंन्द्र:

1. दानीकुण्डी,मरवाही (बिलासपुर)
2. निमोरा (रायपुर)
3. खरसिया (रायगढ़)
4. सरगुजा
5. कटघोरा (कोरबा)

छ.ग. में मुख्य रुप से नर बाँस पाये जाते है, कटंग बाँस सरगुजा वन मंडल में मिलता है।

आगे की राह:

  • पृथ्वी पर लगभग 3 ट्रिलियन पेड़ विद्यमान हैं, इसके अतिरिक्त 1.2 ट्रिलियन पेड़ लगाने हेतु ग्रह पर पर्याप्त जगह मौजूद है जो वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने में लाभदायक साबित होगी।
  • बीमा बांँस पृथ्वी को हरा-भरा बनाए रखने तथा जलवायु परिवर्तन को कम करने के संदर्भ में एक श्रेष्ठ विकल्प साबित हो सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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