छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था
छत्तीसगढ़ एक प्रमुख खनिज संपदा और कृषि आधारित राज्य है। यह राज्य लौह अयस्क और कोयले के भंडार में समृद्ध है और इसी कारण से यहां की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार खनन और इससे संबंधित उद्योग हैं। वर्तमान में, छत्तीसगढ़ का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) लगभग 3.79 लाख करोड़ रुपये है, जो देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 2.7 प्रतिशत है।
- छत्तीसगढ़ भारत के खनिज समृद्ध राज्यों में से एक है। यहाँ पर चूना- पत्थर, लौह अयस्क, तांबा, फ़ॉस्फेट, मैंगनीज़, बॉक्साइट, कोयला, एसबेस्टॅस और अभ्रक के उल्लेखनीय भंडार हैं।
- छत्तीसगढ़ में लगभग 52.5 करोड़ टन का डोलोमाइट का भंडार है, जो पूरे देश के कुल भंडार का 24 प्रतिशत है।
- यहाँ बॉक्साइट का अनुमानित 7.3 करोड़ टन का समृद्ध भंडार है और टिन अयस्क का 2,700 करोड़ से भी ज़्यादा का उल्लेखनीय भंडार है।
- छत्तीसगढ़ में ही कोयले का 2,690.8 करोड़ टन का भंडार है। स्वर्ण भंडार लगभग 38,05,000 किलो क्षमता का है।
- यहाँ भारत का सर्वोत्तम लौह अयस्क मिलता है, जिसका 19.7 करोड़ टन का भंडार है। बैलाडीला, बस्तर, दुर्ग और जगदलपुर में लोहा मिलता है।
- भिलाई में भारत के बड़े इस्पात संयंत्रों में से एक स्थित है।
- राज्य में 75 से भी ज़्यादा बड़े और मध्यम इस्पात उद्योग हैं, जो गर्म धातु, कच्चा लोहा, भुरभुरा लोहा (स्पंज आयरन), रेल-पटरियों, लोहे की सिल्लियों और पट्टीयों का उत्पादन करते हैं।
- खनिज संपदा से ही छत्तीसगढ़ को सालाना 600 करोड़ रुपये से ज़्यादा का राजस्व प्राप्त होगा।
- रायपुर ज़िले के देवभोग में हीरे के भंडार हैं। यहाँ हीरों की तलाश शुरू हो गई है और लगभग दो वर्षों में इसका खनन आरंभ हो जाने पर राज्य को 2,000 करोड़ रुपये सालाना का अतिरिक्त राजस्व मिलने की उम्मीद है।
- ऊर्जा छत्तीसगढ़ अपनी आवश्यकता से अधिक ऊर्जा का उत्पादन करता है।
- यहाँ कोयला समृद्ध कोरबा में तीन तापविद्युत संयंत्र हैं और अन्य कई संयंत्र लगाने की योजना है साउथ ईस्टर्न कोलफ़ील्डस लिमिटेड कोयले के विशाल भंडार वाले क्षेत्रों में खोज कर रहा है।
- छत्तीसगढ़ में तेंदू पत्ते का भारत के कुल उत्पादन का 70 प्रतिशत होता है।
छत्तीसगढ़ राज्य की अर्थव्यवस्था औद्योगिक क्षेत्र
एक औद्योगिक क्षेत्र और कई विकासशील औद्योगिक नगर वाले छ्त्तीसगढ़ का आर्थिक परिवेश आधुनिक है। भिलाई, बिलासपुर, रायपुर, रायगढ़ और दुर्ग राज्य के मुख्य शहर हैं। भिलाई की रेलवे लाइन के पूर्व और पश्चिम में शहरी विस्तार हुआ है। कोरबा, राजनांदगांव और रायगढ़ अन्य विकासशील शहरी केंद्र हैं। सीधे नहरों से सिंचित क्षेत्र भी हैं। इस क्षेत्र का ग्रामीण आधार कमज़ोर है और यहाँ के भीतर इलाके अभी तक घोर ग्रामीण तथा अविकसित हैं। शहरी केंद्रों का क्षेत्रीय जनजातीय अर्थव्यवस्था पर बहुत कम प्रभाव पड़ा है।
छत्तीसगढ़ राज्य की अर्थव्यवस्था में उद्योग
छत्तीसगढ़ में स्थित प्रमुख उद्योग इस्पात, सीमेंट, आलुमिनियम, पेट्रोकेमिकल्स और पावर जेनरेशन हैं। भिलाई इस्पात संयंत्र, एक्सपेंस क्लोराइड्स प्लांट, हिंडालको और बालको जैसे प्रमुख औद्योगिक उपक्रम यहां स्थित हैं। इसके अलावा, छत्तीसगढ़ में विभिन्न छोटे और मझोले उद्योगों जैसे कि रेशम, हथकरघा और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी स्थापित हैं।
उत्पादन के आधार पर उद्योगों को निम्नांकित वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है
- वृहद उद्योग
- मध्यम उद्योग
- लघु उद्योग तथा
- अति लघु उद्योग।
01. वृहद उद्योग :-
वह प्रतिष्ठान, जिसमें संरचना एवं मशीनरी में विनियोजन 05 करोड़ रुपए से अधिक हो, वृहद उद्योग की श्रेणी में आता है।
02. मध्यम उद्योग :-
वह प्रतिष्ठान, जिसमें संरचना एवं मशीनरी में विनियोजन 01 करोड़ रुपए से 05 करोड़ रुपए तक हो, मध्यम उद्योग की श्रेणी में आता है।
03. लघु उद्योग :-
वह प्रतिष्ठान, जिसमें स्थित परिसम्पत्तियों अर्थात संरचना एवं मशीनरी में विनियोजन 01 करोड़ रुपयों से अधिक न हो, लघु उद्योग की श्रेणी में आता है।
04. अति लघु उद्योग वे उद्योग हैं, जिनमें संयंत्र व मशीनरी में विनियोजन 25 लाख रुपए से अधिक न हो। लघु उद्योग एक व्यापक क्षेत्र है, जिसमें लघु, अति लघु तथा कुटीर उद्योग के क्षेत्र उद्योग शामिल हैं और इस क्षेत्र का भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजित विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। (लघु उद्योग क्षेत्र, लघु कृषि एवं ग्रामीण उद्योग मंत्रालय, 1999)। ऐसे उद्योग जो मुख्यतः परिवार के सदस्यों की सहायता से पूर्ण कालिक अथवा अंशकालिक रोजगार की तरह संचालित किये जाते हैं, कुटीर उद्योग कहलाते हैं।
छ्त्तीसगढ़ अभी तक अपने संसाधनों का संपूर्ण लाभ नहीं उठा पाया है। औद्योगिकीकरण हो रहा है, लेकिन उसकी गति धीमी है। बड़े और मध्यम पैमाने के उद्योग केंद्र सामने आ रहे हैं। सुनियोजित विकास के अंग के रूप में रायपुर और भिलाईनगर को औद्योगिक क्षेत्र के रूप में स्थापित किया गया है। सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिस उपकरण और उच्च प्रौद्योगिक ऑप्टिकल फ़ाइबर के निर्माण जैसे अन्य आधुनिक उद्योगों को भी स्थापित किया गया है।
आधारभूत उद्योगों में लौह-इस्पात के पश्चात राज्य में सीमेंट उद्योग का स्थान है। राज्य में चुना-पत्थर की अधिकता के कारण सीमेंट उद्योग का पर्याप्त विकास हुआ। राज्य की प्रथम सीमेंट कारखाने की स्थापना ACC( Associated Cement Company ) के द्वारा 1964 ई. में दुर्ग के जामुल नामक स्थान पर की गई थी।
निजी उद्योगों में सीमेंट कारख़ाने, काग़ज़, चीनी और कपड़ा (सूती, ऊनी, रेशम और जूट) मिलों के साथ- साथ आटा, तेल और आरा मिलें भी हैं। यहाँ पर सामान्य इंजीनियरिंग वस्तुओं के साथ- साथ रासायनिक खाद, कृत्रिम रेशे और रसायन उत्पादन की भी कुछ इकाइयाँ हैं। राज्य की लधु उद्योग इकाइयों का राष्ट्रीय परिदृश्य पर प्रभाव छोड़ना बाक़ी है। लेकिन हथकरघा उद्योग यहाँ फल- फूल रहा है और साड़ी बुनने, ग़लीचे व बर्तन बनाने तथा सोने रसायन उत्पादन की भी कुछ इकाइयाँ हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य उद्योगों की दृष्टि से भारत के धनी राज्यों में से एक है। यह राज्य वन संपदा में सम्पन्न होने के साथ-साथ खनिज उद्योगो में विकास के लिए अनेकों प्रकार के खनिज उपलब्ध है। यहां विभिन्न उद्योगों के लिए प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध है। इस राज्य कृषि आधारित उद्योग भी उपलब्ध है।
राज्य के उद्योगों को निम्नलिखित श्रेणियों में बाँटा गया है:-
1. खनिज आधारित उद्योग
2. वन आधारित उद्योग
3. कृषि आधारित उद्योग
छत्तीसगढ़ के प्रमुख उद्योग :
छत्तीसगढ़ प्रदेश में स्थापित लौह इस्पात एवं स्पंज आयरन उत्पादक इकाइयाँ | |||||
क्र. | इकाई का नाम | क्षेत्र | पूँजी निवेश (लाख रु. में) | रोजगार | उत्पादन वर्ष |
01. | स्टील अथॉरिटी | भिलाई ऑफ इंडिया | 60875.47 | 63291 | 1959 |
02. | जिन्दल स्ट्रीप्स लिमिटेड | पतरापाली, रायगढ़ | 47802.26 | 938 | 1991 |
03. | एच.ई.जी. लिमिटेड | बोरई, दुर्ग | 10600.00 | 805 | 1992 |
04. | प्रकाश इण्डस्ट्रीज लिमिटेड | चांपा | 21800.00 | 950 | 1993 |
05. | रायपुर एलाय एंड स्टील लिमिटेड | सिलतरा | 5006.00 | 400 | 1993 |
06. | मोनेट इस्पात रायपुर | मन्दिर हसौद | 1594.20 | 159 | 1994 |
07. | नोवा आयरन एंड स्टील लिमिटेड | दगोरी, बिलासपुर | 18300.00 | 811 | 1994 |
08. | जायसवाल निको लिमिटेड | सिलतरा, रायपुर | 39900.00 | 690 | 1996 |
09. | रायगढ़ इलेक्ट्रोड प्रा. लिमिटेड | खैरपुर, रायगढ़ | 96.29 | 50 | 1995 |
स्रोत : उद्योग संचालनालय, रायपुर (छत्तीसढ़) |
1. खनिज आधारित उद्योग:
खनिज संसाधन छत्तीसगढ़ देश के सबसे बड़े खनिज संसाधनों वाले राज्यों में से एक है। यहां लौह अयस्क, कोयला, बॉक्साइट, डोलोमाइट और बेरिल जैसे महत्वपूर्ण खनिज पदार्थों के बड़े भंडार मौजूद हैं। राज्य के महत्वपूर्ण खनिज उत्पादन में लौह अयस्क (38 प्रतिशत), कोयला (24 प्रतिशत) और सीमेंट ग्रेड लाइमस्टोन (100 प्रतिशत) शामिल हैं।
खनिज आधारित उद्योगों में लौह-इस्पात, सीमेंट, एल्युमिनियम आदि प्रमुख प्रमुख है।
लौह-इस्पात,
छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख उद्योग है। लौह-इस्पात कारखाना दुर्ग जिले में भिलाई में स्थित है। यह राज्य का एक मात्र इस्पात कारखाना है। भिलाई इस्पात संयत्र की स्थापना 1955 ई. में पूर्व सोवियत संघ के सहयोग के की गई थी। इस संयंत्र में उत्पादन फरवरी 1959 से प्रारम्भ हुआ था।
इस संयंत्र के लिए लौह अयस्क डल्ली-राजहरा की पहाड़ियों से, कोकिंग कोयला झरिया एवं कोरबा से, धुला हुआ कोयला करगाली, पाथरडीह और दुगधा से प्राप्त किया जाता है।
सीमेंट उद्योग,
आधारभूत उद्योगों में लौह-इस्पात के पश्चात राज्य में सीमेंट उद्योग का स्थान है। राज्य में चुना-पत्थर की अधिकता के कारण सीमेंट उद्योग का पर्याप्त विकास हुआ । प्रथम सीमेंट कारखाने की स्थापना ACC( Associated Cement Company ) के द्वारा 1964 ई. में दुर्ग के जामुल नामक स्थान पर की गई थी।
राज्य में सीमेंट कारखाने:
- जामुल – दुर्ग
- बैकुंठपुर, मांढर, नेवर, तिल्दा, रावण भाटा – रायपुर
- अकलतरा – जांजगीर-चाँम्पा
- गोपालनगर – जांजगीर-चाँम्पा
- मोदीग्राम – रायगढ़
- भूपदेवपुर – रायगढ़
- बस्तर – बस्तर
- सोनडीह – बलौदाबाजार
छत्तीसगढ़ प्रदेश में स्थापित सीमेंट उत्पादक इकाइयाँ | |||||
क्रमांक | इकाई का नाम | क्षेत्र | पूँजी निवेश (लाख रुपए में) | रोजगार | उत्पादन वर्ष |
01. | ए.सी.सी. | जामुल, दुर्ग | 112 करोड़ | 2000 | 1964 |
02. | सेंचुरी सीमेंट | बैकुण्ठ, रायपुर | 22126.26 | 894 | 1975 |
03. | सीमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इण्डिया | अकलतरा | 3420.00 | 509 | 1979 |
04. | रेमण्ड सीमेंट वर्क्स | अकलतरा | 26639.37 | 1519 | 1982 |
05. | हीरा सीमेंट लिमिटेड | जगदलपुर | 470.77 | 190 | 1986 |
06. | केलकर प्रोडक्ट्स भूपदेवपुर | रायगढ़ | 275.00 | – | 1987 |
07. | रूद्र सीमेंट लिमिटेड | जगदलपुर | 205.00 | 140 | 1987 |
08. | अम्बुजा सीमेंट | रवान, बलौदाबाजार | 25300.00 | 600 | 1987 |
09. | लाफार्ज इण्डिया लिमिटेड | सोनाडीह, रायपुर | 30,000.00 | 499 | 1993 |
10. | भिलाई सीमेंट कम्पनी प्रा. लि. | दुर्ग | 102.10 | 56 | 1993 |
11. | लार्सन एण्ड टुब्रो लिमिटेड | हिरमी, रायपुर | 57000 | 200 | 1994 |
12. | ग्रासिम सीमेंट लिमिटेड | रवान, बलौदाबाजार | 51532.00 | 552 | 1995 |
13. | वैष्णौ सीमेंट कम्पनी | दर्रामुड़ा, रायगढ़ | 576.33 | 44 | 1996 |
स्रोत : उद्योग संचालनालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) |
एल्युमिनियम उद्योग,
देश में प्रथम सार्वजनिक एल्युमिनियम संयंत्र भारत एल्युमिनियम कंपनी लिमिटेड ( BALCO ) की स्थापना तृतीय पंचवर्षीय योजना में छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में 27 नवंबर 1965 में किया गया। इस कारखाने में उत्पादन वर्ष 1975 में सुरु हुआ। इस कारखाने के लिए बॉक्साइट की आपूर्ति अमरकंटक एवं पुटका स्थित खानों से तथा जल की आपूर्ति हसदो नदी से किया जाता है।
इस संयंत्र के तीन अंग है। एल्युमिनियम संयंत्र, प्रगालक संयंत्र तथा फैब्रिकेशन संयंत्र।
छत्तीसगढ़ प्रदेश में स्थापित रासायनिक इकाइयाँ | |||||
क्र. | इकाई का नाम | क्षेत्र | पूँजी निवेश (लाख रुपए में) | रोजगार | उत्पादन वर्ष |
1. | धरम सी मोरार जी केमिकल कं. लिमिटेड | कुम्हारी, दुर्ग | 1745.22 | 304 | 1961 |
2. | एसियाटिक ऑक्सीजन एण्ड एसीटिलीन क. लिमिटेड | कुम्हारी, दुर्ग | 240.00 | 172 | 1963 |
3. | हिन्दुस्तान केमिकल वर्क्स | भिलाई, दुर्ग | 44.00 | 95 | 1964 |
4. | रेजीनेट केमिकल | भिलाई | 50.00 | 230 | 1970 |
5. | ऋषि गैसेस प्रा. लि. | तिफरा बिलासपुर | 721.95 | 96 | 1977 |
6. | बी.ई.सी. फर्टिलाइजर | सिरगिट्टी, बिलासपुर | 1881.73 | 367 | 1985 |
7. | पंकज ऑक्सीजन लिमिटेड | उरला, रायपुर | 856.13 | 53 | 1986 |
8. | साकेत इंड. गैसेस लिमिटेड | उरला, रायपुर | 602.31 | 53 | 1988 |
9. | मीनवुल रॉक फाइबर लिमिटेड | रींवा गहन, राजनांदगांव | 550.00 | 165 | 1991 |
10. | शिवनाथ आर्गनिक प्रा. लि. | बोरई, दुर्ग | 231.00 | 28 | 1994 |
11. | वंदना इण्डस्ट्रीज लिमिटेड | उरला, रायपुर | 321.14 | 165 | 1994 |
12. | किस्टोन इंड. औद्योगिक संस्थान | भिलाई | 250.00 | 95 | 1995 |
13. | रायपुर रोटोकास्ट सिन्थेटिक | उरला, रायपुर डिवीजन | 578.60 | 250 | 1995 |
14. | विश्व विशाल इंजीनियरिंग | देवादा राजनांदगांव | 620.00 | 20 | 1995 |
15. | रोटोकास्ट इक्विपमेन्ट | उरला एण्ड एससेरीज | 175.78 | 69 | 1996 |
16. | सुनील पॉलीपैक लिमिटेड | उरला | 414.12 | 80 | 1996 |
17. | जयश्री पॉलीटेक्स प्रा.लि. | उरला | 129.79 | 102 | 1997 |
18. | रुक्मणी मेटल एण्ड गैसेस प्रा.लि. | सोमनी, राजनांदगांव | 90.84 | 12 | 1997 |
स्रोत : उद्योग संचालनालय, रायपुर (छत्तीसगढ़) |
2. वन आधारित उद्योग:
कागज उद्योग,
मध्य भारत पेपर मिल – चाँम्पा
बीड़ी-सिगरेट उद्योग,
राज्य में बीड़ी उद्योग कुटीर उद्योग के रूप में हुआ है। राज्य में इस उद्योग के प्रमुख केंद्र जगदलपुर, डोंगरगढ़, राजनांदगांव, खैरागढ़ तथा बिलासपुर है। राज्य में एम.पी.टोबैको लिमिटेड तथा पनामा सिगरेट तथा भिलाई में औधोगिक नगर का लक्ष्मी टोबैको ब्रिस्टल सिगरेट का उत्पादन करता है।
कत्था,
सरगुजा वुड प्रोडक्टस – अम्बिकापुर
हर्रा,
हर्रा निकलने का कारखाना राज्य में रायपुर तथा धमतरी जिले में स्थित है।
कोसा,
राज्य में चाँम्पा ( जांजगीर-चाँम्पा ) विशेष रूप से कोसा उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। इसके अलावा बिलासपुर, कोरबा, रायगढ़, जशपुर, अम्बिकापुर, महासमुंद, धमतरी, कांकेर, जगदलपुर तथा दंतेवाड़ा जिलों में इस उद्योग का प्रमुखता से विकास हुआ है।
3. कृषि आधारित उद्योग:
कृषि छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था का एक अन्य महत्वपूर्ण स्तंभ है। यहां की मुख्य फसलें धान, मक्का, गेहूं, ग्वार, तिल और अन्य दलहन हैं। राज्य भारत में धान और ग्वार के उत्पादन में अग्रणी है। साथ ही, यहां मुर्गीपालन, मत्स्य पालन और डेयरी उद्योग भी तेजी से बढ़ रहे हैं।
चावल मिल,
राज्य में साबसे ज्यादा चावल की मिले रायपुर जिले में तथा साबसे कम सरगुजा जिले में स्थित है। राज्य में 700 से ज्यादा मिलो की संख्या है।
जुट उद्योग,
राज्य का एकमात्र जुट कारखाना रायगढ़ में स्थित है। इसकी स्थापना 1935 में कई गईं थी।
शक्कर उद्योग,
राज्य में कुल शक्कर कारखाना है।
सूती वस्त्र उद्योग,
राज्य में बंगाल-नागपुर कॉटन मिल की स्थापना 1862 में राजा बलराम दास के प्रयासों से स्थापित हुआ। वर्ष 2002 में इस मिल को पूरी तरह बंद कर दिया गया।
एस्ट्रोबोर्ड उद्योग,
कारखाना रायगढ़ में स्थित है।
छत्तीसगढ़ की नदियाँ, सहायक नदी एवं अपवाह तंत्र
भिलाई इस्पात संयंत्र
“Iron and steel industry is a key industry of national important, the development of various industrial activities in the country is linked with its development” (Chaudhury, 1964, 4)
द्वितीय पंचवर्षीय योजना के अन्तर्गत 2 फरवरी, 1955 को भारत तथा सोवियत संघ समझौते के तहत तकनीकी आर्थिक सहयोग से इस संयंत्र की आधारशिला रखी गई। संयंत्र की वर्तमान उत्पादन क्षमता 40 लाख टन इस्पात उत्पादन की है। यह संयंत्र प्रदेश के दुर्ग जिले में मुम्बई हावड़ा मुख्य रेलमार्ग पर भिलाई नामक स्थान पर स्थापित है।
संयंत्र स्थल हेतु भिलाई का चयन 14 मार्च, 1955 को इस दृष्टिकोण से किया गया कि प्रथम, यहाँ इस्पात संयंत्र हेतु आवश्यक संसाधन जैसे लौह खनिज, चूना पत्थर, कोयला, मैग्नीज समीपवर्ती क्षेत्रों में उपलब्ध हैं, द्वितीय शिवनाथ तथा खारुन नदी इस क्षेत्र में प्रवाहित होती है।
संयंत्र स्थापना के समय यह क्षेत्र पूर्णतः पिछड़ा हुआ था। अतः संयंत्र के लिये स्थान तथा श्रमिकों की कोई समस्या नहीं थी। परिवहन की दृष्टि से मुम्बई हावड़ा रेलमार्ग तथा राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 इस क्षेत्र से होकर गुजरते हैं। उपरोक्त सभी कारणों के परिणामस्वरूप, भिलाई, जो इस्पात संयंत्र की स्थापना से पूर्व पन्द्रह अज्ञात गाँवों का समूह मात्र था, वर्तमान में देश का प्रमुख औद्योगिक तीर्थ है।
संयंत्र में जनवरी 1959 में पहली कोक ओवन बैटरी प्रारम्भ की गई तथा 4 जनवरी, 1959 को ब्लास्ट फर्नेस क्रमांक-1 प्रारम्भ हुआ। 22 फरवरी, 1961 को निर्माण का प्रथम चरण पूरा किया गया इसके साथ ही भिलाई इस्पात संयंत्र सार्वजनिक क्षेत्र में निर्मित तथा निर्धारित क्षमता को प्राप्त करने वाला प्रथम इस्पात संयंत्र बन गया। प्रथम चरण के निर्माण में 201 करोड़ रुपए की लागत आई।
प्रथम चरण का कार्य पूर्ण होने के पूर्व ही भारत तथा सोवियत सरकार के मध्य 25 लाख टन इनगाट इस्पात वार्षिक उत्पादन क्षमता तक विस्तार हेतु 12 सितम्बर, 1959 को सहमति हुई। इस चरण में वायर रॉड मिल का निर्माण, ओपन हर्थ भट्टियों की क्षमता में वृद्धि व ब्लास्ट फर्नेस का आकार बढ़ाया गया। प्रथम चरण की सभी ओपन हर्थ भट्टियाँ 250 टन क्षमता की थीं। इनमें से एक को 500 टन क्षमता का किया गया तथा 500 टन क्षमता की चार भट्टियाँ और बनाई गई।
भारत और सोवियत सरकार के बीच सितम्बर 1959 की सहमति के आधार पर 16 अगस्त, 1960 को हिन्दुस्तान स्टील लिमिटेड और त्याज प्रोमेक्सपोर्त के मध्य भिलाई इस्पात संयंत्र के विस्तार हेतु अनुबन्ध हुआ। विस्तार कार्य का प्रारम्भ अगस्त 1962 में किया गया तथा 150 करोड़ रुपयों की लागत से 01 सितम्बर, 1967 तक पूरा कर लिया गया।
1962 में भारत-चीन युद्ध के पश्चात 32 लाख टन इन गाट इस्पात वार्षिक उत्पादन क्षमता हेतु द्वितीय विस्तार की योजना पर विचार किया गया। इस सम्बन्ध में भारत और पूर्व सोवियत संघ के मध्य 10 दिसम्बर, 1966 को अनुबन्ध किया गया। इसके तहत संयंत्र की क्षमता 32 लाख टन वार्षिक के स्थान पर 40 लाख टन इनगाट इस्पात वार्षिक करने का निर्णय लिया गया जिसे 27 अक्टूबर, 1988 को पूर्ण कर देश का वृहद इस्पात संयंत्र राष्ट्र को समर्पित किया गया। इसके साथ ही भिलाई इस्पात संयंत्र की कुल लागत 2300 करोड़ रुपए हो गई।
उद्योग का स्थानीयकरण :-
लौह इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के तीन प्रमुख कारक कच्चा माल, शक्ति के साधन तथा बाजार महत्त्वपूर्ण हैं, जिनके पारस्परिक खिंचाव के सन्तुलन बिन्दु पर इस उद्योग का स्थानीयकरण होता है। जिस स्थान पर इन कारकों का संगम समान बिन्दु पर होता है, वह स्थान इस उद्योग के स्थानीयकरण हेतु सर्वोत्तम केन्द्र माना जाता है। इस दृष्टि से भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थिति उपयुक्त है। यह संयंत्र कच्चे माल के क्षेत्र तथा परिवहन मार्गों के मध्य स्थित है।
प्रमुख कच्चे माल तथा आपूर्ति के स्रोत :-
लौह इस्पात उद्योग हेतु प्रयुक्त कच्चा माल वजन में भारी होता है। प्रति टन इस्पात के निर्माण में 1.75 टन खनिज लौह, 1.75 टन कोयला, 1.5 टन चूना पत्थर तथा अन्य खनिज पदार्थों की आवश्यकता होती है। इस प्रकार 4.5 टन भार के कच्चे माल से निर्मित इस्पात का वजन केवल 1 टन होता है। स्पष्ट है कि यह सभी पदार्थ सकल कच्चे पदार्थों की श्रेणी में आते हैं जो अत्यधिक भार खोने वाले पदार्थ हैं। वेबर की शब्दावली अनुसार इस उद्योग का पदार्थ निर्देशांक बहुत अधिक है।
संयंत्र हेतु आवश्यक प्रमुख कच्चे माल लौह अयस्क, चूना पत्थर, डोलोमाइट, मैग्नीज एवं बाक्साइट तथा कोयला है। लौह अयस्क की आपूर्ति संयंत्र से 90 किमी दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित राजहरा खदान से रेल तथा सड़क मार्ग द्वारा की जाती है। संयंत्र की ये निजी खदानें 10929.80 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई है। चूना पत्थर 20 किमी उत्तर दिशा में स्थित नन्दिनी तथा 286 किमी दूर कटनी से, डोलोमाइट 135 किमी दूर बिलासपुर जिले में स्थित हिर्री खदान से, मैग्नीज 200 किमी दूर बालाघाट एवं नागपुर से, बाक्साइट 486 किमी दूर टिकरिया से तथा कोयले की आपूर्ति बिहार तथा पश्चिम बंगाल से की जाती है।
लौह उद्योग के स्थानीयकरण में जल की सुलभता एक महत्त्वपूर्ण कारक है। संयंत्र को जल की आपूर्ति तांदुला नहर तथा मरौदा टैंक से की जाती है।
उत्पादन क्षमता तथा उत्पादन प्रतिरूप :-
संयंत्र की विभिन्न इकाइयों का वर्गीकरण, उत्पादन क्षमता निम्नांकित है :-
भिलाई संयंत्र : प्रमुख उत्पाद तथा उत्पादन क्षमता | |||
क्रमांक | इकाई | उत्पाद | वार्षिक उत्पादन क्षमता (हजार टन में) |
01. | कोक ओवन बैटरी-9
i. 8 बैटरियाँ, प्रत्येक में 65 ओवन, 21.6 घनमीटर आयतन |
+25 मिमी. सूखा कोक ऊँचाई 4.3 मीटर | 3303 |
02. | ii. 01 बैटरी में 67 ओवन 41.6 मीटर आयतन, ऊँचाई 7 मीटर | ||
03. | सिंटरिंग संयंत्र – 2
i. 4 सिटरिंग मशीन, प्रत्येक 50 वर्ग मी. हार्थ क्षेत्रफल की ii. 2 सिंटर मशीन, प्रत्येक 75 वर्ग मी. हार्थ क्षेत्रफल की |
सिंटर
सिंटर |
2040 |
04. | ब्लास्ट फर्नेस 7
i. 5 धमन भट्टियाँ 1033 घनमीटर की ii. 1 धमन भट्टी 1719 घनमीटर की iii. 1 धमन भट्टी 2000 घनमीटर की |
गरम धातु तथा ढलवाँ लोहा | 4080
630 |
05. | स्टील मेटलिंग शॉप नं 1
i. ऑक्सीजन ब्लोन कन्वर्ट्स-3 प्रत्येक 100/130 टन क्षमता का |
द्रव इस्पात |
1500 |
06. | सतत ढलाई शाखा
i. स्लैब ढलाई हेतु 4 सिंगल स्ट्रैंड ढलाई मशीन, छड़ ढलाई हेतु 1 फोर स्ट्रैंड ढलाई मशीन |
स्लैब
छड़ |
1180
245 |
07. | ब्लूमिंग मिल
पुनर्योजीशोषी गड्ढों के 14 समूहों के साथ 1150 मिमी ब्लूमिंग मिल |
छड़ | 2149 |
08. | बिलेट मिल
12 आधारों वाली 1000/700/500 मिमी सतत बिलेट मिल |
बिलेट | 2054 |
09. | रेल एवं स्ट्रक्चर मिल | रेल पटरियाँ | 750 |
10. | मर्चेन्ट मिल | मर्चेन्ट उत्पाद | 500 |
11. | वायर रॉड मिल | वायर रॉड्स | 400 |
12. | प्लेट मिल | प्लेट्स | 950 |
स्रोत : प्रचालन सांख्यिकी, भिलाई इस्पात संयंत्र। |
क्षमता के उपयोग दृष्टिकोण से भिलाई इस्पात संयंत्र का भारतीय इस्पात प्राधिकरण के संयंत्रों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। संयंत्र द्वारा उत्पादित उत्पादों का विभिन्न देशों ब्रिटेन, अमरीका, जापान, इटली, मिस्र, श्रीलंका, दुबई, ताइवान, ईरान, तुर्की, सूडान, घाना, दक्षिण कोरिया, मलेशिया तथा न्यजीलैण्ड को निर्यात किया जाता है। भिलाई इस्पात संयंत्र भारतीय रेलवे, नौसेना तथा तेल निगम की आवश्यकतानुसार विशेष इस्पात का निर्माण भी करता है।
उपलब्धियाँ :
वर्ष 1992-93 से 1995-96 तक सर्वश्रेष्ठ एकीकृत इस्पात संयंत्र के रूप में प्रधानमंत्री ट्रॉफी जीतने का गौरव संयंत्र को प्राप्त है। संयंत्र को प्राप्त अन्य पुरस्कारों में राष्ट्रीय ऊर्जा संरक्षण पुरस्कार, आई.आई.एम. राष्ट्रीय गुणवत्ता पुरस्कार तथा कर्मचारी सुझाव के लिये इंसान पुरस्कार सम्मिलित है। वर्ष 1992 में स्वच्छ एवं हरित अभियान के लिये प्रथम ‘सेल पर्यावरण पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। देश में पहली बार भिलाई इस्पात संयंत्र के चार कर्मिकों का चयन देश के सर्वोच्च श्रम पुरस्कार प्रधानमंत्री के श्रमरत्न पुरस्कार के लिये किया गया है। इसके अतिरिक्त संयंत्र के अनेक कर्मिकों ने प्रधानमंत्री का ‘श्रम श्री’ तथा ‘श्रम वीर’ पुरस्कार, ‘एन.आर.डी.सी.’ पुरस्कार तथा ‘विश्वकर्मा’ पुरस्कार जीतने का गौरव प्राप्त किया है।
संयंत्र की दल्ली, झरनदल्ली तथा नन्दिनी खदानों ने राष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा पुरस्कार अर्जित किये हैं। कम से कम ऊर्जा का उपयोग कर राष्ट्रीय गुणवत्ता पुरस्कार तथा ऊर्जा पुरस्कार संयंत्र को प्राप्त हुए हैं।
भिलाई इस्पात संयंत्र के सहायक उद्योगों का विकास :-
छत्तीसगढ़ प्रदेश में उद्योगों की स्थापना के लिये कच्चे माल तथा आधारभूत संसाधन प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं। उपरोक्त तत्व जितनी ज्यादा मात्रा में उपलब्ध होते हैं, उस क्षेत्र का विकास भी उतनी ही तीव्रता से होता है, जिसके फलस्वरूप क्षेत्र विशेष में औद्योगिक पुंज का निर्माण होने लगता है। प्रदेश में भिलाई इस्पात संयंत्र की स्थापना के साथ ही औद्योगिक पुंज का निर्माण प्रारम्भ हुआ।
इस इस्पात संयंत्र का विकासकारी प्रभाव छत्तीसगढ़ प्रदेश में विशेष रूप से रायपुर, दुर्ग तथा राजनांदगांव जिले पर पड़ा है। अतः भिलाई, दुर्ग, रायपुर एक औद्योगिक पुंज के रूप में उभर कर सामने आए है। जहाँ मुख्यतः इस्पात संयंत्र के सहायक उद्योगों की स्थापना हुई है। इन उद्योगों का विकास मुख्यतः राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 तथा भिलाई नन्दिनी मार्ग पर हुआ है। प्रदेश में प्रमुख इस्पात नगर भिलाई दक्षिण – पूर्व रेल मार्ग पर स्थित एक महत्त्वपूर्ण औद्योगिक केन्द्र है।
किसी क्षेत्र में इस्पात संयंत्र की स्थापना उस क्षेत्र की नगरीयकरण एवं आर्थिक परिवर्तन की प्रक्रिया में एक युगान्तकारी विषय हो सकती है। संयंत्र की स्थापना के फलस्वरूप नगर का तेजी से विकास हुआ। जनसंख्या में वृद्धि के फलस्वरूप नगरीकरण व्यापक रूप में हुआ है। इस्पात संयंत्र की स्थापना तथा विस्तार के आर्यकाल में औद्योगिक गतिविधियों में वृद्धि हुई। अधिकांश इकाइयाँ सहायक इकाइयाँ होकर अपने उत्पाद की खपत के लिये भिलाई इस्पात संस्थान पर निर्भर हैं।
सहायक उद्योगों की संख्या एवं विकास :-
भिलाई इस्पात संयंत्र के सहायक उद्योगों की कुल संख्या 166 है, जिनमें से भिलाई में 106, रायपुर में 29, दुर्ग में 23 तथा राजनांदगांव में 8 सहायक उद्योग स्थापित है।
छत्तीसगढ़ की मिट्टिया एवं उनके प्रकार
एल्यूमिनियम
एल्यूमिनियम क्षेत्र में कई प्रमुख इकाइया है जो अपने विश्व स्तरीय गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध हैं। कोरबा जिले में भारत एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड छत्तीसगढ़ के औद्योगिक उन्नति के गर्व सिद्ध हुआ है। राज्य के विनिर्माण क्षेत्र की एक विविध रेंज की जरूरतों के लिए खानपान, कंपनी ने भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र प्रदान नौकरी में कार्य करता है। स्थानीय आबादी के एक बड़े हिस्से को उलझाने, कंपनी राज्य आय सृजन की मात्रा में वृद्धि करने के लिए सक्षम बनाता है। छत्तीसगढ़ मे बॉक्साइट अयस्क के भंडार चारो ओर फैला है। जिस वजय से यहा की बॉक्साइट बाहर भी ले जायी जाती है। छत्तीसगढ़ खनिज विकास निगम राज्य के एल्यूमीनियम उद्योगों को हर संभव सहायता प्रदान करता है ताकि और अधिक उत्पादक परिणाम समय की एक छोटी सी अवधि के भीतर प्राप्त किया जा सके।
थर्मल पावर Thermal Power
राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड तीन 500 मेगावाट और तीन 200 मेगावाट केन्द्रों के साथ छत्तीसगढ़ के कोरबा क्षेत्र में तैनात है और एक दैनिक आधार पर 40, 000 लाख टन कोयले की खपत है. इसके अलावा छत्तीसगढ़, एनटीपीसी की इस इकाई के मुख्य क्षेत्रों को बिजली की आपूर्ति से भी गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे भारत के अन्य राज्यों के लिए और भी दादरा नगर हवेली, दमन और गोवा के लिए बिजली वितरित है।
खनन क्षेत्र Mining
छत्तीसगढ़ की जीडीपी
वर्तमान कीमतों के आधार पर, छत्तीसगढ़ का सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GDP) 2020-21 में 3.62 ट्रिलियन अनुमानित है। राज्य के जीडीपी में 2015-16 और 2020-21 के बीच 9.75 प्रतिशत की वृद्धि हुयी है।
यह हीरे सहित 28 प्रमुख खनिज संपदा उपलब्ध है। 2019-20 में 15.66 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ छत्तीसगढ़ भारत में खनिज उत्पादन (परमाणु, ईंधन और लघु खनिजों को छोड़कर) के मामले में चौथे स्थान पर है।
2019-20 के दौरान राज्य में कुल खनिज उत्पादन 7,554.53 करोड़ रुपये (US $ 1.07 बिलियन) था। इसके अलावा, बॉक्साइट, चूना पत्थर और क्वार्टजाइट के काफी भंडार राज्य में उपलब्ध हैं।
छत्तीसगढ़ भारत का एकमात्र राज्य है जो टिन पैदा करता है। राज्य में भारत के टिन अयस्क भंडार का 35.4 प्रतिशत हिस्सा है। 2018-19 के दौरान, राज्य में टिन उत्पादन 19,410 किलोग्राम था। छत्तीसगढ़ में एल्युमिनियम और लौह अयस्क की संयुक्त निर्यात 931.63 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
छत्तीसगढ़ में कोरबा जिले को भारत की शक्ति राजधानी के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा, बॉक्साइट, चूना पत्थर और क्वार्टजाइट के काफी भंडार राज्य में उपलब्ध हैं।
मार्च 2020 तक, छत्तीसगढ़ में 12,835.40 मेगावाट की कुल स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता थी, जिसमें निजी उपयोगिताओं के तहत 8,208.30 मेगावाट, राज्य उपयोगिताओं के तहत 2,211.05 मेगावाट और केंद्रीय उपयोगिताओं के तहत 2,416.05 मेगावाट की क्षमता थी। 2019-20 में राज्य में ऊर्जा की आवश्यकता 27,303 मिलियन यूनिट थी।
छत्तीसगढ़ से कुल व्यापारिक निर्यात वित्त वर्ष 19 में यूएस $ 1,243.43 मिलियन और अप्रैल-दिसंबर 2019 के बीच $ 960.39 मिलियन था।
छत्तीसगढ़ राज्य की अर्थव्यवस्था में कृषि
एक विस्तृत और लहरदार प्रदेश छ्त्तीसगढ़ में चावल और अनाज की खेती होती है। निम्नभूमि में चावल बहुतायत में होता है, जबकि उच्चभूमि में मक्का और मोटे अनाज की खेती होती है। क्षेत्र की महत्त्वपर्ण नक़दी फ़सलों में कपास और तिलहन शामिल हैं। बेसिन में आधुनिक कृषि तकनीकों का प्रचलन धीमी गति से हो रहा है। कृषि की दृष्टि से यह एक बेहद उपजाऊ क्षेत्र है।
यह देश का ‘धान का कटोरा’ कहलाता है और 600 से ज़्यादा चावल मिलों को अनाज की आपूर्ति करता है। कुल क्षेत्र का आधे से कम क्षेत्र कृषि योग्य है, हालांकि स्थलाकृति, वर्षा और मिट्टी में विविधता के कारण इसका वितरण असमान है। यहाँ की कृषि की विशेषता कम उत्पादन और खेती की पारंपरिक विधियों का प्रयोग है।
छत्तीसगढ़ राज्य की अर्थव्यवस्था में पशुपालन
प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालन एक महत्वपूर्ण गतिविधि है जिससे कृषि पर आश्रित परिवारों को अनुपूरक आय तो प्राप्त होती ही है, साथ ही पशु उत्पाद प्रोटीन का प्रमुख स्त्रोत भी है। सूखा एवं अन्य प्राकृतिक विपदाओं जैसे आकस्मिता के समय पशुधन ही आय का एक मात्र स्त्रोत के रूप में उपलब्ध होता है। इस प्रकार पशुधन ग्रामीणों की अर्थव्यवस्था में प्रमुख स्थान रखता है।
छत्तीसगढ़ राज्य में लगभग 1.27 करोड़ पशुधन संख्या है। जिसमें गौ वंशीय पशु संख्या 64 प्रतिशत, बकरी 16 प्रतिशत, भैंस वंशीय 14 प्रतिशत एवं भेड़-सूकर संख्या 06 प्रतिशत है। प्रदेश में 3.6 मिलियन ग्रामीण परिवार है, जिसमें से 18 प्रतिशत भूमिहीन, 24 प्रतिशत उप सीमांत कृषक एवं 19.5 प्रतिशत सीमांत परिवार है।
19वीं पशु संगणना के अनुसार 52.59 प्रतिशत ग्रामीण परिवार पशुपालन का कार्य करते है जिसमें से 42.8 प्रतिशत परिवार भेड़-बकरी पालन एवं 67.9 प्रतिशत परिवार कुक्कुट-पालन का कार्य करते है। छोटे एवं अर्द्धमध्यम किसान परिवार के लगभग 50.6 प्रतिशत गौ-वंशीय पशु एवं 52.4 प्रतिशत भैस-वंशीय पशुओं का पालन करते है। इससे स्पष्ट है कि ग्रामों में गरीबी उन्नमूलन हेतु पशुपालन की अहम भूमिका है।
मवेशी और पशुपालन महत्त्वपूर्ण हैं, मवेशीयों में गाय, भैंस, बकरी, भेड़, और सूअर शामिल हैं। यहाँ बिलासपुर स्थित बकरी व गाय के कृत्रिम प्रजनन और संकरण केंद्र इन जानवरों की संख्या और गुणवत्ता बढ़ाने में लगे हैं।
प्रदेश में विभिन्न प्रजातियों की पशुधन संख्या –
प्रमुख पशुधन | वर्ष 2003
(17 वीं पशु संगणना) |
वर्ष 2007
(18 वीं पशु संगणना) |
वर्ष 2013
(19 वीं पशु संगणना) |
गौ एवं भैंस वंशीय (लाख) | 104.80 | 111.00 | 112.03 |
उन्नत गौ वंशीय (लाख) | 2.53 | 4.14 | 16.40 |
बकरी /भेड़ (लाख) | 24.56 | 29.08 | 33.93 |
कुक्कुट (लाख) | 81.81 | 142.46 | 179.55 |
तहसील एवं ब्लाॅक स्तरीय पद संरचना
इस स्तर पर पशु चिकित्सालय/कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र/मुख्य ग्राम खण्ड जैसी संस्थायें कार्यरत है, जहां पर पशु चिकित्सा सहायक शल्यज्ञ पदस्थ है।
ग्राम स्तरीय पद संरचना
इस स्तर पर पशु औषधालय/कृत्रिम गर्भाधान उपकेन्द्र/मुख्य ग्राम खण्ड इकाई संचालित है, जहां पर सहायक पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी पदस्थ है।
पशु स्वास्थ्य रक्षा एवं विकास कार्यो हेतु संचालित संस्थायंे –
पशु चिकित्सालय – 320
पशु औषधालय – 822
पशु रोग अनुसंधान प्रयोगशाला – 16
चलित पशु चिकित्सा इकाई – 27
कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र – 22
कृत्रिम गर्भाधान उपकेन्द्र – 249
मुख्य ग्राम खण्ड – 10
मुख्य ग्राम खण्ड उपकेन्द्र – 99
प्रदेश मेें पशु उत्पाद की स्थिति –
पशु उत्पाद | छत्तीसगढ़
(2002-03) |
छत्तीसगढ़
(2015-16) |
राष्ट्रीय औसत
(2012-13) |
दुग्ध (मिलियन टन) | 804 | 1277 | 132.4 |
अण्डा (लाख) | 7790 | 15028 | 697307 |
मांस (हजार टन) | 8399 | 41386 | 5252 |
प्रति व्यक्ति पशु उत्पाद की उपलब्धता –
पशु उत्पाद | छत्तीसगढ़
(2001-02) |
छत्तीसगढ़
(2013-14) |
राष्ट-वतकयिीय औसत
(2010-11) |
दुग्ध (ग्राम प्रतिदिन) | 104 | 130 | 261 |
अण्डा (संख्या प्रतिवर्ष) | 37 | 56 | 58 |
मांस (कि.ग्रा. प्रतिवर्ष) | 0.36 | 1.41 | 4.998 |
Data and Knowledge Credit : http://agriportal.cg.nic.in/ahd/ahdHi/default.aspx
छत्तीसगढ़ राज्य की अर्थव्यवस्था में परिवहन
छ्त्तीसगढ़ देश के अन्य भागों से सड़क, रेल और वायुमार्ग से भलीभांति जुड़ा है। यहाँ रायपुर और बिलासपुर में हवाई अड्डे हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 6 और 200 इससे होकर गुज़रते हैं। कुछ प्रमुख रेलमार्ग राज्य से होकर गुज़रते हैं और बिलासपुर, दुर्ग, रायपुर, मनेंद्रगढ़ तथा चांपा महत्त्वपूर्ण रेल जंक्शन हैं।
विकास की चुनौतियां कुछ प्रमुख चुनौतियों में आधारभूत संरचना की कमी, निवेश की कमी, स्वास्थ्य और शिक्षा की समस्याएं शामिल हैं। सरकार इन समस्याओं से निपटने के विभिन्न उपाय कर रही है।
छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था प्राकृतिक संसाधनों और कृषि आधारित है। राज्य अपनी प्राकृतिक संपदाओं का लाभ उठाकर खनन, विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में विकास कर रहा है। यदि इन प्रयासों को सही दिशा मिले तो छत्तीसगढ़ के आर्थिक विकास की गति और तेज हो सकती है।
FAQ
Q. छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था क्या है?
Ans: छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था भारत के खनिज समृद्ध राज्यों में से एक है। छत्तीसगढ़ में लगभग 52.5 करोड़ टन का डोलोमाइट का भंडार है, जो पूरे देश के कुल भंडार का 24 प्रतिशत है।
Q. छत्तीसगढ़ में ग्रामीण वित्त के संस्थागत स्रोत कौन कौन से हैं?
Ans:छत्तीसगढ़ में ग्रामीण वित्त के ग्रामीण साख के मुख्य स्रोत – सहकारी समितियां,भूमि विकास बैंक, व्यावसायिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक.
Q. छत्तीसगढ़ की प्रमुख फसल क्या है?
Ans: छत्तीसगढ़ की प्रमुख फसल कृषि में प्रमुख रूप से धान ,मक्का की फसल का और गेहू,ज्वार,कोदो कुटकी ,चना ,तुअर ,उड़द ,तिल ,राम तिल ,सरसों सहायक रूप से उत्पादन किया जाता है । कृषि के अलावा पशुपालन , कुक्कुट पालन, मत्स्य पालन भी सहायक भूमिका निभाते हैं ।
Q. छत्तीसगढ़ में कौन कौन सी फसल बोई जाती है?
Ans: छत्तीसगढ़ में राज्य में लगभग 37.46 लाख कृषक परिवार है, जिसमें से लगभग 80 प्रतिशत लघु एवं सीमांत श्रेणी के है। धान, सोयाबीन, उड़द एवं अरहर खरीफ मौसम की मुख्य फसलें है
Q. कृषि साख के गैर संस्थागत स्रोत कौन कौन से हैं?
Ans: कृषि साख के गैर संस्थागत स्रोत -मनी लेंडर्स, ट्रेडर्स, रिलेटिव्स, फ्रेंड्स और लैंडलॉर्ड वे व्यक्ति हैं जो नॉन प्रोवाइड करते हैं।
Q. छत्तीसगढ़ राज्य की सर्वाधिक लोकप्रिय फसल कौन सी है?
Ans: छत्तीसगढ़ की प्रमुख फसलें – धान : यह राज्य की सबसे प्रमुख फसल है। गेहूँ : उपयुक्त मृदा एवं सिंचाई सुविधाओं के अभाव के कारण राज्य में गेहूँ की पैदावार कम होती है। अरहर : यह दलहन की एक प्रमुख फसल है। ज्वार : राज्य में ज्वार की कृषि अत्यंत कम लगभग 0.19% होती है।
Q. छत्तीसगढ़ धान का उत्पादन कब होता है?
Ans: छत्तीसगढ़ धान का उत्पादन सूखी भूमि में धान की बुआई के बाद बीजों के जमाव के लिए हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। धान की सीधी बुआई का उपयुक्त समय 20 मई से 30 जून तक होता है।
Q. छत्तीसगढ़ में धनिया को क्या कहा जाता है?
Ans: मारवाडी भाषा में इसे धोणा कहा जाता है।
Q. छत्तीसगढ़ में प्रमुख उद्योग कौन कौन से हैं?
Ans: छत्तीसगढ़ के प्रमुख उद्योगों की सूची-खनिज आधारित उद्योग: खनिज आधारित उद्योगों में लौह-इस्पात, सीमेंट, एल्युमिनियम आदि प्रमुख प्रमुख है। लौह-इस्पात, छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख उद्योग है।
Q. छत्तीसगढ़ में प्रमुख उद्योग कौन कौन से हैं?
Ans: छत्तीसगढ़ राज्य में लगभग 37.46 लाख कृषक परिवार है, जिसमें से लगभग 80 प्रतिशत लघु एवं सीमांत श्रेणी के है। धान, सोयाबीन, उड़द एवं अरहर खरीफ मौसम की मुख्य फसलें है तथा रबी मौसम में मुख्य रूप से चना एवं तिवड़ा का उत्पादन लिया जाता है।