छत्तीसगढ़ का वैदिक काल इतिहास
- प्रारम्भिक वैदिक अथवा पूर्व वैदिक सभ्यता की जानकारी देने वाले ग्रन्थ ‘ऋग्वेद’ में छत्तीसगढ़ से सम्बन्धित कोई जानकारी नहीं मिलती.
- इसमें विन्ध्य पर्वत एवं नर्मदा नदी का उल्लेख भी नहीं है.
- उत्तर वैदिक काल में देश के दक्षिण भाग से सम्बन्धित विवरण मिलने लगते हैं, ‘शतपथ ब्राह्मण’ में पूर्व एवं पश्चिम में स्थित समुद्रों का उल्लेख मिलता है, ‘कौशीतिक उपनिषद्’ में विन्ध्य पर्वत का नामोल्लेख है.
- परवर्ती वैदिक साहित्य में नर्मदा का उल्लेख रेवा के रूप में मिलता है. महाकाव्यों में इस क्षेत्र का पर्याप्त उल्लेख मिलता है.
इस काल के अंतर्गत वैदिक सभ्यता को रखा गया है जिसे 2 भागो (1 ऋग्वैदिक और 2 उत्तर वैदिक काल) में बाटा गया है।
1 ऋग्वैदिक काल (1500 से 1000 ई.पू.)
ऋग्वैदिक काल में ऋग्वेद का रचना हुवा एवं सभ्यता के निर्माता आर्य थे। आर्य पंचनद क्षेत्र उत्तर भारत तक ही सिमित थे।
2 उत्तर वैदिक काल (1000 से 600 ई.पू.)
- उत्तर वैदिक काल से छत्तीसगढ़ का उल्लेख मिलना प्रारंभ होता है
- उत्तर वैदिक काल में आर्यो का विस्तार मध्य भारत में होने लगा तथा नर्मदा नदी को रेवा नदी के रूप में उल्लेखित किया गया है अतः कह सकते है की उत्तर वैदिक काल में छत्तीसगढ़ का वर्णन मिलता है।
छत्तीसगढ़ का इतिहास : रामायण काल
- ‘रामायण’ से ज्ञात होता है कि राम की माता कौशल्या राजा भानुमन्त की पुत्री थीं.
- ‘कोसल खण्ड’ नामक एक अप्रकाशित ग्रन्थ से जानकारी मिलती है कि बिन्ध्य पर्वत के दक्षिण में नागपत्तन के पास कोसल नामक एक शक्तिशाली राजा था.
- इनके नाम ही पर इस क्षेत्र का नाम ‘कोसल’ पड़ा. राजा कोसल के वंश में भानुमन्त नामक राजा हुआ, जिसकी पुत्री का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ से हुआ था.
- भानुमन्त का कोई पुत्र नहीं था, अतः कोसल (छत्तीसगढ़) का राज्य राजा दशरथ को प्राप्त हुआ. इस प्रकार राजा दशरथ के पूर्व ही इस क्षेत्र का नाम ‘कोसल’ होना ज्ञात होता है.
- ऐसा माना जाता है कि वनवास के समय सम्भवतः राम ने अधिकांश समय छत्तीसगढ़ के आस-पास व्यतीत किया था.
- स्थानीय परम्परा के अनुसार ‘शिवरीनारायण’, ‘खरौद’ आदि स्थानों को रामकथा से सम्बद्ध माना जाता है.
- लोक विश्वास के अनुसार श्री राम द्वारा सीता का त्याग कर देने पर तुरतुरिया (सिरपुर के समीप) में स्थित महर्षि वाल्मीकि ने अपने आश्रम में शरण दी थी और यहीं लव और कुश का जन्म हुआ माना जाता है.
- श्री राम के पश्चात् ‘उत्तर कोसल’ के राजा उनके ज्येष्ठ पुत्र लव हुए, जिनकी राजधानी श्रावस्ती थी और अनुज कुश को ‘दक्षिण कोसल’ मिला, जिसकी राजधानी कुशस्थली थी.
- रामायण काल के कुछ प्रसिद्धस्थल है –
- शिवरीनारायण – राम के वनवास का अधिकांश भाग यही व्यतीत हुआ था, यहाँ पर श्री राम ने सबरी के जूठे बेर खाए
- तुरतुरिया – ऋषि वाल्मीकि का आश्रम है, राम द्वारा माता सीता को त्यागे जाने पर, माता सीता ने यहाँ शरण लिया था, और, लव और कुश का यहाँ जन्म हुआ था, यह स्थान बलोदाबजार जिले में स्थित है|
- सरगुजा – रामगढ़, सिताबोंगरा गुफा, लक्ष्मण बेन्ग्र, किसकिन्धा पर्वत, सीताकुंड, हाथिखोह आदि है
- खरौद में – खरदूषण का शासन था, यह स्थान जांजगीर चाम्पा में है,
छत्तीसगढ़ का इतिहास : महाभारत काल
- महाभारत में भी इस क्षेत्र का उल्लेख सहदेव द्वारा जीते गए राज्यों में प्राक्कोसल के रूप में मिलता है.
- बस्तर के अरण्य क्षेत्र को ‘कान्तार’ कहा गया है. कर्ण द्वारा की गई दिग्विजय में भी कोसल जनपद का नाम मिलता है.
- राजा नल ने दक्षिण दिशा का मार्ग बनाते हुए भी विन्च्य के दक्षिण में कोसल राज्य का उल्लेख किया था.
- महाभारतकालीन ऋषभतीर्थ भी बिलासपुर जिले में सक्ती के निकट ‘गुंजी’ नामक स्थान से समीकृत किया जाता है.
- स्थानीय परम्परा के अनुसार भी मोरध्वज और ताम्रध्वज की राजधानी ‘मणिपुर’ का तादात्म्य वर्तमान ‘रतनपुर’ से किया जाता है.
- इसी प्रकार यह माना जाता है कि अर्जुन के पुत्र बभ्रुवाहन’ की राजधानी ‘सिरपुर’ थी.
- पौराणिक साहित्य से भी इस क्षेत्र के इतिहास पर विस्तृत प्रकाश पड़ता इस क्षेत्र के पर्वत एवं नदियों का उल्लेख अनेक पुराणों में उपलब्ध है.
- इस क्षेत्र में राज्य करते हुए इक्ष्वाकुवंशियों का वर्णन मिलता है. इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि वैवस्वत मनु के पौत्र तथा सुद्युम्न के पुत्र विवस्वान को यह क्षेत्र प्राप्त हुआ था.
छत्तीसगढ़ का इतिहास : माहाजनपद काल
- यह 6वी शताब्दी का काल है,
- व्हेनसांग की किताब सी.यु.की. के अनुसार गौतम बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के बाद छ.ग. की राजधानी श्रावस्ती में आये थे और तीन माह निवासरत थे
- गौतम बुद्ध के दक्षिण यात्रा की जानकारी हमें “औदान शतक नामक ग्रन्थ” से मिलता है
- इस समय भारतभूमि दो भागो में बंट गया, जनपद और महाजनपद
- छ.ग. चेदी महाजनपद का हिस्सा था, इसी कारन इसे चीदिसगढ़ कहा जाता था,
छत्तीसगढ़ का इतिहास : मौर्यकाल
- छ.ग. में मौर्य काल के कुछ प्रमाण प्राप्त हुए है, जो इसप्रकार है-
- छ.ग. के तोसली में मौर्यकालीन अशोक के अभिलेख मिले है,
- सरगुजा में जोगीमारा गुफा मौर्यकालीन है,
- सूरजपुर के रामगढ़ के सिताबोंगरा गुफा में विश्व की प्राचीनतम नाट्यशाला मिली है,
- मौर्य कालीन सिक्के — रायगढ़ जिले के सारंगढ़,
- जांजगीर चाम्पा में अकलतरा, ठाठरी
- रायपुर के तारापुर में, आदि जगहों पर मौर्यकालीन सिक्के मिले है,
- जोगीमारा गुफा – देवदासी सुतनुका (नृत्यांगना) एवं देवदत्त नामक नर्तक की प्रणय गाथा मिलती है, जो की पालीभाषा, और ब्राम्ही लिपि में है
छत्तीसगढ़ का इतिहास : सातवाहन युग
- मौर्य काल के बाद यह युग आया,
- इस युग की राजधानी प्रतिष्ठान ( महाराष्ट्र ) थी,
- पूर्व ओड़िसा में खारवेल शासको का शासन था, जो की सातवाहन राजाओ के समकालीन थे,
- छ.ग. के पूर्वी भाग का कुछ हिस्सा खारवेल शासको के अंतर्गत आता था,
- छ.ग. में सातवाहन काल ने लम्बे समय तक शासन किया,
- सातवाहन कालीन प्राप्त प्रमाण –सातवाहन राजा अपीलक का एक मात्र मुद्रा जांजगीर जिले के बालपुर एवं बिलासपुर जिले के मल्हार से प्राप्त हुए है,
- जांजगीर चाम्पा के किरारी नामक गाँव के तालाब में सातवाहन कालीन काष्ठ स्तम्भ मिला है,इसमें कर्मचारियों,अधिकारियो के पद व नाम है,
- इस काल के शिलालेख जांजगीर.चाम्पा के दमाऊदरहा में मिले है, जिसकी भाषा प्राकृत है, इस शिलालेख में सातवाहन राजकुमार वरदत्त का उल्लेख मिलता है.
छत्तीसगढ़ का इतिहास : कुषान वंश
- इस वंश के प्रमुख शासक विक्रमादित्य व कनिष्क थे,
- इस वंश के शासक कनिष्क के सिक्के रायगढ़ जिले के खरसिया के तेलिकोट गाँव से पुरातत्ववेत्ता डॉ. डी. के. शाह को मिले थे,
- ताम्बे के सिक्के बिलासपुर के चकरबेड़ा से मिले है,
छत्तीसगढ़ का इतिहास : मेघवंश
- गुप्तवंश के पहले मेघवंश शासको ने शासन किया था,
- इन्होने 200 ए.डी. – 400 ए.डी. तक शासन किया,
- इसका प्रमाण मल्हार में मिले इस वंश के सिक्के से मिलता है
छत्तीसगढ़ का इतिहास : वाकाट वंश
- इस वंश में शासक प्रवरसेन प्रथम ने समस्त दक्षिण कोसल को जित लिया था,
- इन्हें बस्तर के कोरापुट क्षेत्र मा राज्य करने वाले शासक नलवंशो से संघर्ष करना पड़ा था,
- इनकी राजधानी – नन्दिवर्धन ( नागपुर ) थी
- इनका काल – 3 री – 4 थी शताब्दी थी,
इस वंश के कुछ अन्य प्रसिद्ध शासक –
1. महेंद्र सेन
- हरिषेन द्वारा लिखित प्रयाग प्रशस्ति में गुप्त शासक समुद्रगुप्त द्वारा महेंद्रसेन को पराजित करने का उल्लेख मिलता है,
2. रुद्रसेन
- इनका विवाह चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती से हुआ था,
3. नरेंद्रसेन
- इसके द्वारा कोशल, मालवा, मैकल, पर विजय का उल्लेख हमें पृथ्वीसेन द्वितीय के बालाघाट लेख से मिलता है, इसे नलवंशी शासक भवदत्त ने हराया था,
4. पृथ्वीसेन
- इसने नलवंशी भवदत्त के बेटे अर्थ पति भट्टारक को हराया था,
- इसने पुष्करी भोपालपटनम को बर्बाद कर दिया था,
छत्तीसगढ़ का इतिहास : गुप्तकाल
- इनका समय ईसा. से चौथी शताब्दी का है,
- गुप्त काल के प्रारम्भ में छ.ग. दो भाग दक्षिण कोशल व उत्तर कोशल में बंट गया था,
- इस समाय छ.ग को दक्षिणापथ(कोसल) , व बस्तर को माहाकंतर कहा जाता था,
- दक्षिण कोसल के शासक राजा महेंद्र सिंग एवं महाकांतर के शासक व्याघ्रराज थे,
- इनके समकालीन शासक समुद्र गुप्त ने इन्हें परास्त किया था, ( समुद्रगुप्त द्वारा इन्हें परास्त करने का उल्लेख हमें हरिषेण कि किताब “प्रयाग प्रशस्ति” में मिलती है,)
- इस काल के सिक्के हमें रायपुर जिले के पिटाई वल्द ग्राम से 1 सिक्के मिले है,
- दुर्ग के बानबरद से 9 सिक्के व रायपुर के आरंग से भी इस काल के सिक्के मिले है, जिससे यह स्पष्ट होता है की इस काल के शासको ने गुप्त वंश का प्रभुत्व स्वीकार किया था,
- इन सिक्को में गुप्तवंशीय राजा महेंद्रादित्य व विक्रामादित्य का नाम अंकित है,
- ये शासक कुमारगुप्त व स्कंदगुप्त ही थे, जिनका नाम इन सिक्को में अंकित है,
- 1972 में इस काल के 9 सिक्के मिले थे, जिसमे पहला सिक्का कांच का था, दूसरा सिक्का कुमारगुप्त का व अन्य सिक्का विक्रमादित्य (स्कंगुप्त ) का था,
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