छत्तीसगढ़ का इतिहास : छत्तीसगढ़ के स्थानीय राजवंश – छत्तीसगढ़ में नल वंश [4थी से 12वी सदी तक]

छत्तीसगढ़ में नल वंश

  • भारत के इतिहास के आधार पर वायु पुराण और ब्राह्मण पुराण के आधार पर नाल शासकों को पौराणिक वंश है जिनकी शासन कोसल प्रदेश में था ।पुरातात्विक आधार पर दक्षिण कोशल का इतिहास चौथी शताब्दी से सुरु हो जाती है जिसमे सबसे पहले सूत्रपात इलाहाबाद की समुद्रगुप्त की प्रस्सति से प्रारम्भ होता है।
  • शिलालेखों ,ताम्रपत्रों ,सोने के मुद्रासे पता चालता है की बस्तर में सबसे पहले नलवंश के शासकों का राज प्रारम्भ हुआ ।इसके शासन काल कब प्रारम्भ हुआ कब तक रहा राज्य की सीमा कहा से कहा तक था इसपर विद्वानों का मतैक्य नही है ।305 ईसवी में महाकान्तर पर व्याघ्रराज के शासन होने के प्रमाण मिले है । बस्तर में भी इनके शासन का प्रारंभ माना जा सकता है । इनकी राजधानी पुस्करी है । वर्तमान बस्तर की सीमा से लगे पुस्कर  नगर  था ।

  • तीन राजाओं के शिलालेखों में उन्हें नल परिवार के सदस्यों के रूप में उल्लेख किया गया है: अर्थपति, भवदत्त और स्कंदवर्मन।
  • कुछ सोने के सिक्के तीन अन्य नल शासकों – वरहरराज, नंदनराज और स्तम्भ के अस्तित्व का सुझाव देते हैं।
  • हालांकि इन सिक्कों में उनके वंश के नाम का उल्लेख नहीं है, वे नल राजाओं के बैल और अर्धचंद्राकार राजवंशीय प्रतीक को धारण करते हैं, और ज्ञात नल सिक्कों के समान वजन करते हैं।
  • साथ ही, जारीकर्ता का नाम सभी सिक्कों पर छठी शताब्दी की “बॉक्स-हेडेड” लिपि में लिखा गया है, और वे सभी पूर्व नाला क्षेत्र में खोजे गए हैं।
  • वराहराज के सिक्कों की खोज अर्थपति और भवदत्त के सिक्कों के साथ की गई है।
  • इन सभी साक्ष्यों से संकेत मिलता है कि वराहराज, नंदनराज और स्तम्भ सभी नल राजा भी थे।

नल वंश की शासन काल – चौंथी से बारहवीं शताब्दी 
नलवंश की जानकारी – पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल अभिलेख से 
राजधानी – उड़ीसा -कोटपुट ,छत्तीसगढ़ – पुष्करी (वर्तमान -भोपाल पटनम )
शासन क्षेत्र – बस्तर 

नल वंश के प्रमुख शासक

वराहराज  –
शासन काल -400 – 440 ई.

  • नलवंश के संस्थापक मने जाते है
  • कोंडागांव तहसील के एंडेगा ग्राम में वराह राज के 29 सिक्के प्राप्त हुए है
  • मिराषि के लिपि शास्त्र के अनुसार वराह राज को भावदत्त का पूर्वज मन गया है ।

 

 

सम्बन्धित पुरातात्विक सामग्री

इस वंश से सम्बन्धित पुरातात्विक सामग्री अत्यन्त अल्प है. समुद्र गुप्त के प्रयाग प्रशस्ति में उल्लिखित महाकान्तर के राजा व्याघ्रराज का सम्बन्ध कुछ इतिहासकारों ने बस्तर कोरापुट के नल वंश से स्थापित किया है, किन्तु अन्य स्रोतों से इसकी पुष्टि नहीं हो सकी है. इस वंश के कुल पाँच अभिलेख भवदत्त वर्मा का ऋद्धिपुर (अमरावती) ताम्रपत्र तथा पोड़ागढ़ (जैपुर राज्य) शिलालेख, अर्थपति का केशरिबेढ़ ताम्रपत्र एवं पांडियापाथर लेख (ओडिशा) तथा विलासतुंग का राजिम शिलालेख ज्ञात है. इसके अतिरिक्त एडेगा तथा कुलिया से प्राप्त मुद्रा भाण्डों में इस वंश के राजाओं के सिक्के मिलते हैं.

अन्य अभिलेखों में समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति, प्रभावती गुप्त (वाकाटक) का ऋद्धिपुर ताम्रपत्र, चालुक्य पुलकेशिन प्रथम की ऐहोल प्रशस्ति एवं पल्लव नंदीवर्धन के उदयेन्दिरम् ताम्रपत्र आदि से नलों के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है.

नलवंश का पौराणिक सम्बन्ध

नलवंशीय अपना सम्बन्ध पौराणिक नल से स्थापित करते हैं, किन्तु ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिलते हैं. अभिलेखों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि इस वंश का सर्वप्रथम शासक वराहराज था.

एडेंगा के मुद्राभाण्ड में वराहराज (400-440 ई.) की 29 स्वर्ण मुद्रायें प्राप्त हुई हैं. मिराशी का मत है कि यह भवदत्त का पूर्ववर्ती तथा सम्भवतः उसका पिता था. अभिलेखीय साक्ष्यों से नल-वाकाटक संघर्ष की जानकारी मिलती है.

केसरिबेड़ ताम्रपत्र

इसके उत्तराधिकारी भवदत्त वर्मा (440-460 ई.) ने बस्तर तथा कोसल क्षेत्र में वाकाटकों को पराजित कर अपने साम्राज्य का विस्तार नागपुर तथा बरार तक कर लिया था. इसके पश्चात् अर्थपति उत्तराधिकारी हुआ. अर्थपति के केसरिबेड़ ताम्रपत्र से विदित होता है कि अर्थपत्ति नलों की प्राचीन राजधानी पुष्करी में वापस आ गया था.

इसी के समय वाकाटकों द्वारा पुनः शक्ति प्राप्त कर लेने पर आक्रमण कर नागपुर तथा विदर्भ का क्षेत्र नलों से न केवल वापस ले लिया गया, अपितु नलों की राजधानी पुष्करी को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया. अर्थपति की शासन अवधि को डॉ. हीरालाल शुक्ल ने 460-475 ई. निरूपित किया है. इसके अपने पिता भवदत्त की भाँति सोने के सिक्के चलाये, एडेंगा निधि में अर्थपति के दो सिक्के प्राप्त हुए हैं,

पोड़ागढ़ शिलालेख

अर्थपति के बाद उसका अनुज स्कंदवर्मा शासक बना. इसके पोड़ागढ़ शिलालेख से ज्ञात होता है कि उसने नष्ट-भ्रष्ट पुष्करी को पुनःस्थापित किया. स्कंदवर्मा के पश्चात् नल राजाओं के विषय में प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती. विलासतुंग के राजिम शिलालेख से उसके पिता विरूपाक्ष और पितामह पृथ्वीराज के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है.

स्कंदवर्मा और पृथ्वीराज के मध्य के इतिहास पर अभिलेखों से कोई जानकारी नहीं मिलती, उसके उत्तराधिकारियों से सम्भवतः दक्षिण कोसल के पाण्डुवंशीय शासकों की सत्ता समाप्त की थी. दुर्ग जिले के कुलिया नामक स्थान से प्राप्त मुद्राभाण्ड से नंदनराज और स्तम्भ नामक दो राजाओं के विषय में जानकारी मिलती है. सम्भवतः ये नल वंशी शासक ही थे, जिन्होंने स्कंदवर्मा के पश्चात् और पृथ्वीराज के पूर्व शासन किया होगा. इसी समयावधि में पूर्वी चालुक्य (वेगी के) राजा कीर्तिवर्मन प्रथम 567-97 ई. ने नलों पर आक्रमण किया था. कालान्तर में शक्ति अर्जित कर नल राजा दक्षिण कोसल के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थानान्तरित हो गये.

राजिम शिलालेख

राजिम से प्राप्त विलासतुंग के प्रस्तर अभिलेख के अध्ययन एवं पुरालिपीय प्रमाणों के आधार पर विलासतुंग की राज्यावधि 700-740 ई. रखी जा सकती है. यह विष्णु उपासक था. राजिम का प्रसिद्ध राजीवलोचन मन्दिर विलासतुंग द्वारा ही बनवाया गया था.

पल्लव नंदीवर्धन के उदयेन्दिरम् दानपत्र से विलासतुंग के पश्चात् पृथ्वीव्याघ्र नामक नल राजा के उत्तराधिकार प्राप्त करने का पता चलता है. इसके डेढ़ सौ वर्ष पश्चात् एक अन्य नलवंशी राजा भीमसेन का पता चलता है, सम्भवतः वह शैव था. इसका एक ताम्रपत्र प्राप्त हुआ है, जिसके विश्लेषण से इसकी राज्यावधि 900-925 ई. मानी जा सकती है. भीमसेन के पश्चात् नलवंशी राजाओं के सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक जानकारी नहीं मिलती. सम्भवतः दंडकारण्य में नाग एवं मध्य छत्तीसगढ़ के सोमवंशियों ने इनका स्थान ले लिया. इस प्रकार चौथी से बारहवीं शताब्दी के मध्य लगभग 800 वर्षों तक शासन करने के पश्चात् इनका अन्त हो गया,

सारांश

इस वंश के संस्थापक शिशुक (290-330 ई.) था ,

परन्तु वास्तविक संस्थापक वराहराज (330-370ई.) को माना जाता है।

नल वंश का शासन छत्तीसगढ़ में 5 -12 ई. तक था।

इनका शासन क्षेत्र बस्तर ( कोरापुट – वर्त्तमान कांकेर ) था, तथा इनकी राजधानी पुष्करी (वर्त्तमान : भोपालपट्टनम – बीजापुर जिला ) थी।

इस वंश का प्रतापी शासक भवदत्त वर्मन हुए।

इस वंश के अन्तिम शासक नरेंद्र धवल (935-960 ई) था।

वाकाटक इस वंश के समकालीन थे। इन दोनों वंशो के बिच लंबा संघर्ष चला।

नल वंश के प्रमुख शासक:-

शिशुक (290-330 ई.)–

संस्थापक वराहराज (330-370ई.) – ( वास्तविक संस्थापक )

एड़ेंगा के मुद्रा भाण्डो से वराहराज के 29 स्वर्ण मुद्रायें प्राप्त हुए हैं।

 भवदत्त वर्मन अर्थपति :- पोडगढ़ शिलालेख में इन्हें प्रथम शासक कहा गया है।

नरेंद्रसेन के पुत्र पृथ्वीसेन द्वितीय ने भवदत्त वर्मन के पुत्र अर्थपति को पराजित कर अपने पिता के पराजय का बदला लिया ।इस युद्ध में अर्थपति की मृत्यु हो गयी ।

 स्कंदवर्मा :- नलवंश की पुनर्स्थापना की ,यह इस वंश का अत्यधिक शक्तिशाली शासक था ।

स्तम्भराज पृथ्वीराज :- राजिम शिलालेख से प्राप्त जानकारी के अनुशार विलासतुंग के पितामह ।

विरुपाक्ष :- राजिम शिलालेख से प्राप्त जानकारी के अनुशार विलासतुंग के पिता।

विलासतुंग :- राजिम के राजीव लोचन मंदिर का निर्माण सन 712 ई. करवाया।

पृथ्वीव्याघ्र भीमसेन नरेंद्र धवल (अंतिम शसक ) इस वंश के कुल पांच अभिलेख प्राप्त हैं :- भवदत्त वर्मा का ऋद्धिपुर (अमरावती ) ताम्रपत्र भवदत्त वर्मा का पोड़ागढ़ (जैपुर राज्य ) शिलालेख अर्थपति का केशरिबेढ़ ताम्रपत्र अर्थपति का पांडियापाथर लेख (उड़ीसा ) विलासतुंग का राजिम शिलालेख

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