छत्तीसगढ़ पर्यटन : रायगढ़ जिले के प्रमुख पर्यटन क्षेत्र [Tourist Places in Raigarh District]
जिला रायगढ़ : शैलाश्रयों का गढ़
रायगढ़ जिला छत्तीसगढ़ का एक पूर्वी जिला है जिसकी सीमाएँ पूर्व में ओडिशा प्रान्त, उत्तर पूर्व में झारखंड प्रान्त के गुमला जिले से लगती हैं. मुम्बई कोलकाता रेलमार्ग पर बिलासपुर से लगभग 134 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रायगढ़ प्रागैतिहासिक पुरावशेषों, गुप्तकालीन धरोहर, वनप्रान्तर में बसे आदिम आखेट जीवन जीते पहाड़ी कोरवा एवं ग्रामीण आवादी के मध्य घुमावदार घाटियों, अभयारण्य तथा अतीत के अवशेषों के कारण दर्शनीय पर्यटन स्थल है. रायगढ़ नगर में स्थित पर्यटन स्थल भी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं जिनमें ‘इंदिरा विहार’, पहाड़ मंदिर. डीयर पार्क, कमला नेहरू पार्क, मोती महल आदि प्रमुख हैं. तत्कालीन रायगढ़ रियासत के आदिवासी राजाओं द्वारा निर्मित महल, जिसे ‘मोती महल’ नाम दिया गया, जिला मुख्यालय, रायगढ़ में केलो नदी के किनारे स्थित है. दुर्गोत्सव एवं दशहरे के अवसर पर ‘रामलीला समारोह’ एक महत्वपूर्ण स्थानीय उत्सब है, जिसमें भक्तिपरक छत्तीसगढ़ी तथा उड़िया लोक नृत्यों का प्रदर्शन विशिष्ट सांस्कृतिक आयोजन होता है. रायगढ़ ‘कोपा वस्त्र उद्योग’ के लिये विश्व प्रसिद्ध है.
चक्रधर समारोह-
शास्त्रीय नृत्य और संगीत का यह अखिल भारतीय कार्यक्रम रायगढ़ में तत्कालीन रायगढ़ रियासत के महान् संगीतज्ञ राजा चक्रधर सिंह की स्मृति में प्रत्येक वर्ष ‘गणेश उत्सव’ पर आयोजित किया जाता है. अविभाजित म. प्र. सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा स्थापित अखिल भारतीय स्तर का वार्षिक आयोजन पिछले दस वर्षों से रायगढ़ की विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान बन चुका है.
निरंतर गतिमान सार्वकालिक उत्सव
राजा चक्रधर सिंह के कला-स्वप्न का इंद्रधनुषी रूपांकन है चक्रधर समारोह| दरअसल हमारे अपने जीवन के रंगमंच पर, धरती – आकाश के रंगमंच पर ऐसा समारोह निरंतर सम्पन्न होता रहता है| चक्रधर समारोह के उल्लास के घुँघरू, आनंद की रागिनी और खुशियों की रोशनी भरे समूह-वाद्य निरंतर बजते रहते है.. कुछ कुछ कबीर साहब के अनहद नाद की मानिंद|
जब कभी जिंदगी ऐसे ही गुनगुनाती है – जब पंछी गीत गाते है, सिंदूरी किरणों की सुनहली पायल छनकाती, जब धीरे धीरे भोर उतरती है तो पूरी कायनात मे जैसे एक चक्रधर समारोह आयोजित हो जाता है| काले कजरारे बादलो को अपने बड़े से जुड़े मे चाँद खोसे, जब धीरे धीरे रात मुस्कुराती है तो पूरा आसमान चक्रधर समारोह जैसे उत्सव के आनंद से विभोर हो उठता है|
क्यों आयोजन किया जाता ह प्रतिवर्ष इस समारोह का
कहा जाता है कि राजा चक्रधर कला के बहुत प्रेमी थे उन्हीं की याद में हम समारोह का आयोजन किया जाता है जिसमें वालीपुर लोक कला के लोग शिरकत करते हैं। यह मौसम गणेश चतुर्थी के पहले दिन से मनाया जाता है और 10 दिन तक चलता है जिसमें प्रत्येक दिन नए-नए कलाकृति कलाकारों की प्रस्तुति देखने को मिलती है।
कौन थे राजा चक्रधर
राजा चक्रधर सिंह का जन्म 19 अगस्त 1950 में ब्रिटिश भारत में हुआ था उस समय रायगढ़ में बड़े घर तक घर शासकों का शासन था।
पिता का नाम – राजा भूपदेव सिंह
भाई का नाम – राजा नटवर सिंह
इनकी प्रारंभिक शिक्षा रायपुर में हुई कॉलेज की पढ़ाई इन्होंने रायपुर की राजकुमार कॉलेज से की पढ़ाई के सांसद राजा चक्रधर सिंह गायन अनुवादक और कला की विशेषज्ञ थे इन्होंने संगीत में बहुमूल्य कृतियों की रचना की थी।
प्रमुख रचनाएं
- नर्तक सवित्व
- टालटोय निधि
- तलबल पुष्कर
- राजरत्न मंजूस
- गोराज परण पुष्पकर
1917 में राजा भूप देव के निधन के बाद राजा नटवर सिंह गद्दी पर बैठे लेकिन 1924 में उनका देहांत हो गया जिसके बाद राज्य चक्रधर से राजगढ़ की राज गद्दी पर बैठे राजा बनने के बाद उन्होंने कला के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया। राजा चक्रधर सिंह एक उच्च कोटि के तबला वादक दी छत्तीसगढ़ और उनके बाहर भी उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया तबला वादक के साथ कत्थक ने भी उनकी विशेष रूचि थी, पंडित माखनलाल चतुर्वेदी, डॉक्टर राजकुमार वर्मा, प्रेमलाल पुनालाल बक्शी के साथ इलाहाबाद गए और कथक की प्रस्तुति दी हैं । 1938 में चक्रधर अपने साथ कलाकारों के साथ इलाहाबाद गए और कथक की प्रस्तुति दी जिसमें उन्होंने तबला वादन किया था जिसके बाद इन्हीं संगीत सम्राट का title दिया गया राजा चक्रधर सिंह को हिंदी भाषा के साथ संस्कृत, उर्दू और उड़ीसा भाषा का भी विशेष ज्ञान था उन्होंने भारतीय लोक संगीत की अनेक पुस्तकें लिखी हैं।
*अलकापुरी
*बैराग दिया राजकुमार
*काव्य कनान
*मायासक
*मुरीज परम पुस्पकर
*नर्तन सर्वस्य
*निगार फरहाद
*प्रेम के तीर
*रोग रत्न मंजुस
*राम्यानस
*रत्नाहार
*टाल तोयनिधि
*ताइबल पुष्पकर।
चक्रधर के पश्चात उनके पिता राजा बहुत देर से ने जश्न मनाने के लिए शास्त्रीय संगीत और नृत्य महोत्सव के साथ गणेश मेला शुरू किया जिसके बाद यह आगे चलकर चक्रधर समारोह के रूप में मनाया जाने लगा और कला के क्षेत्र में कलाकारों को चक्रधर सम्मान से सम्मानित किया जाता है भारत के आजादी के कुछ महीनों बाद 7 अक्टूबर 1947 को राजा चक्रधर सिंह का स्वर्गवास हो गया उनके बाद उनका पुत्र गद्दी पर बैठा लेकिन 14 अगस्त 1947 को रायगढ़ राजघराने को भारतीय संघ में मिला लिया गया और इस घराने का अंत हुआ तथा लोकतंत्र की शुरुआत हुई इस जगह से आज भी राजा चक्रधर सिंह का महत्व मौजूद है।
किरोड़ीमल शासकीय विविध शिल्प संस्थान-
रायगढ़ में स्थित किरोड़ीमल शासकीय विविध शिल्प संस्थान प्रदेश की महत्वपूर्ण संस्था है.
छत्तीसगढ़ पर्यटन : जिला जशपुर
जिन्दल स्टील एवं पॉवर लिमिटेड :
निजी क्षेत्र का प्रदेश में सर्वप्रमुख उपक्रम-रायगढ़-खरसिया मार्ग में 14 किलोमीटर की दूरी पर जिन्दल स्ट्रिप्स लिमिटेड का स्पंज आयरन उद्योग प्रदेश में निजी क्षेत्र का सबसे बड़ा लौह उद्योग एवं विश्व का सबसे बड़ा कोयला प्रधान स्पंज आयरन निर्माण संयंत्र है, जिसकी वार्षिक क्षमता 650,000 मीट्रिक टन है. जिंदल समुदाय का छत्तीसगढ़ में 900 करोड़ का पूँजी निवेश है, जो प्रदेश में सर्वाधिक है और यह सन् 2006-07 तक 5000 करोड़ हो गया. यहाँ वर्तमान में 3000 लोगों को रोजगार प्राप्त है, जो 2006-07 तक 12000 तक हो गया. इन सबके अलावा जिंदल स्ट्रिप्स लिमिटेड का अपना स्वयं का 150 मेगावाट का पॉवर हाउस जो स्टील प्लांट से उत्सर्जित गैसों (Waste gases) से देश में सबसे सस्ती विद्युत् पैदा करता है, जो स्वयं के उपयोग के अलावा छत्तीसगढ़ विद्युत् मण्डल को दिया जा रहा है. साथ ही जिले में 1000 मेगावाट (4 x 250) का ताप विद्युत् संयंत्र भी ‘रायगढ़ ताप विद्युत् परियोजना’ के नाम से इनके द्वारा स्थापित किया जा रहा है. वह वर्तमान में छत्तीसगढ़ में निजी क्षेत्र का सबसे बड़ा पॉवर प्लांट होगा. कम्पनी के द्वारा विश्व में सबसे अधिक लम्बी रेल पटरियों का निर्माण (120 मी) किया जा रहा है. यह भारत में पहली बार बड़े आकार की यूनिवर्सल बीम (समानांतर फ्लैज बीम्स) का निर्माण करेगी.
टीपा खोल (प्राकृतिक)-
रायगढ़ से 10-12 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में एक पहाड़ी गुफा ‘टीपा खोल’ स्थित है जिसमें आदिम युग के मनुष्यों द्वारा किये गये चित्रांकन पुरातत्व के क्षेत्र में अत्यंत चर्चित हैं. गुफा में चित्रित मानव तथा पशु पक्षियों के चित्र अंधेरे में चमकते हैं.
रामझरना (प्राकृतिक)-
मुम्बई-हावड़ा रेलमार्ग में रायगढ़ से लगभग 17 किलोमीटर की दूरी पर ‘भूपदेवपुर रेलवे स्टेशन से दो किलोमीटर की दूरी पर ‘रामझरना’ स्थित है, जिसे ‘प्रियदर्शिनी पर्यावरण परिसर’ नाम से विकसित किया गया है. लगभग 75 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला यह परिसर प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त स्थल है. परिसर में एक ‘जीवन विहार’ स्थापित किया गया है जिसमें चौसिंघा, चीतल, कोटरी, भालू, मोर आदि वन्य प्राणी रखे गये हैं. इस परिसर का प्रमुख आकर्षण ‘रामझरना’ है. यहाँ के अन्य आकर्षण ‘तरणताल’ (स्वीमिंग पूल) एवं समीप ही ‘जलाशय’ है.
सिंघनपुर (प्रागैतिहासिक, प्राकृतिक)
रायगढ़ से 20 किलोमीटर तथा भूपदेवपुर से 3 किलोमीटर की दूरी पर पर्वत शृंखलाओं में विश्व का प्राचीनतम मानव शैलाश्रय सिंघनपुर में स्थित है. 30 हजार वर्ष पूर्व की ये गुफाएं स्पेन मैक्सिको में प्राप्त शैलाश्रयों के समकालीन हैं. 1912 में पुरातत्ववेत्ता एंडरसन ने सर्वप्रथम यहाँ शैलचित्रों को देखा वाद में महाकोसल इतिहास परिषद् के तत्कालीन अध्यक्ष पं. लोचन प्रसाद पाण्डेय ने प्रकाशित किया. पहाड़ियों में प्रागैतिहासिक काल की तीन गुफाएँ लगभग तीन सौ मीटर लम्बी एवं सात फुट ऊँची हैं. पूर्वमुखी गुफा के बाह्य भाग में विश्व प्रसिद्ध शैलचित्र हैं. इस गुफा के बाह्य भाग पर पशु और मानव आकृतियाँ तथा शिकार के दृश्य आदि का शैल में काफी सुंदर चित्रण किया गया है. सिंघनपुर शैलाश्नय के पूर्व में प्रकाशित 23 चित्रं से आज मात्र 10 चित्र ही सुरक्षित बचे हैं. भारत में अब तक ज्ञात शैलाश्रयों में प्रागैतिहासिक मानब (एवमेन) व मृत्यांगना (मरमेड) का चित्र केवल सिंघपुर शैलाश्रय में है. सिंघनपुर के अधिकांश चित्र अभी तक गहरे लाल रंग के हैं, कुछ लाल लिये हुये नारंगी रंग में हैं और बाद के चित्र लाल और जामुनियाँ रंग के हैं जो करीब करीब काले मालूम पड़ते हैं. वर्गाकार आकृति के मनुष्य के चित्र इसमें देखे जा सकते हैं. सिंघनपुर के चित्रों में शिकार के दृश्यों के चित्र अत्यन्त सुंदर हैं.
छत्तीसगढ़ पर्यटन : जिला बस्तर
बसनाझर शैलाश्रय (ऐतिहासिक, प्राकृतिक)-
सिंघनपुर से सिर्फ 8 किलोमीटर, रायगढ़ से 28 किलोमीटर की दूरी पर ‘बसनाझर शैलाश्रय’ स्थित है. सिंघनपुर की पहाड़ी श्रृंखला से अलग ग्राम चपले से आगे बसनाझर की पहाड़ियों में 2000 फीट ऊँचाई पर बसनाझर शैलाश्रय है. काल की दृष्टि से ये सिंघनपुर के बाद के हैं. पुरातत्वविदों के अनुसार ये दस हजार ई. पूर्व के हैं अर्थात् प्रस्तर तथा नवीन प्रस्तरयुगीन हैं. पहाड़ी के बाह्य भाग पर सामूहिक नृत्य और शिकार के दृश्यों तथा हिरण, हाथी, जंगली भैंसे, घोड़े इत्यादि पशुओं के लगभग चार सौ आदिम शैलचित्र हैं. हाथी का चित्र दूसरे शैलाश्रयों में नहीं हैं. गहरे गैरिक रंगों से अंकित इन चित्रों का आकार 6 से लेकर 18 इंच तक है.
कबरा पहाड़-
रायगढ़ से 8 किमी पूर्व में ग्राम विश्वनाथपाली तथा भजापाली के निकट कबरा पहाड़ है. यहाँ दो हजार फीट की ऊँचाई पर बने गहरे गैरिक रंग के शैलचित्र सुरक्षित हैं. इन चित्रों में प्रमुख रूप से कछुवा, घोड़ों के सजीले चित्र और हिरण के चित्र हैं. यहाँ वन्य पशु जंगली भैंसा का एक विशाल रेखाचित्र है जो गहरे गैरिक रंग में है, जिसका बाह्य रेखांकन हल्के गैरिक रंग का है. यहाँ आदमी का एक वर्गाकार चित्र है, जिस पर अनेक लहरदार पंक्तियाँ हैं तथा एक बाघ से घबराए हुए आदमी का चित्र भी है.
करमागढ़-
रायगढ़ से लगभग 30 किमी दूर उत्तर-पूर्व में करमागढ़ पहाड़ बाँस और अन्य पेड़ों से आच्छादित है. करमागढ़ में करीब 200 फीट की पट्टी पर एक-एक इंच पर 300 से अधिक शैलचित्र हैं. यह शैलाश्रय रायगढ़ जिले के अन्य शैलचित्रों से काफी अलग हैं. यहाँ के शैलचित्रों में एक भी मानवाकृति नहीं है. पशुओं में जलचर प्राणियों की प्रमुखता है. सभी चित्र रंगीन डिजाइनों में हैं. उत्तर से गहरे गैरिक रंग में वन्य पशु, साथ में मेढक की छोटी एवं बड़ी डिजाइन है. मछली, साँप, कछुआ, छिपकली, बरहा, गोह आदि के चित्र हैं. उत्तर के चित्रों में लता पुष्प का एक संतुलित रेखांकन है. जल सहित कमल के सुंदर चित्र एवं रंगीन तितलियों के भी चित्र हैं.
बेनीपाट-
रायगढ़ से 25 किमी उत्तर पूर्व की ओर करमागढ़ शैलाश्रय से पश्चिम में भैसागढ़ी में बेनीपाट शैलाश्रय है, इस शैलाश्रय में कभी पचास से अधिक चित्र थे, किन्तु अब 6-7 चित्र ही आंशिक रूप से परिलक्षित होते हैं. अस्पष्ट चित्रों में एक मछली व कुछ पुष्प लता के चित्र दिखाई देते हैं.
खैरपुर :
अंधेरे में चमकते शैलचित्र-रायगढ़ के उत्तर में 12 किमी दूर टीपाखोल जलाशय के पास खैरपुर पहाड़ी है, इस पहाड़ी में छोटी सी गुफा है. वहाँ अंकित शैलचित्र अद्भुत हैं जो अंधेरे में भी चमकते हैं. शैलचित्रों में नर्तक वस्त्रधारी हैं और साथ में पशु पक्षियों के चित्र भी हैं.
भैसगढ़ी शैलाश्रय –
रायगढ़ से 25 किमी दूर भैसगढ़ी के दुर्गम वन में प्रागैतिहासिक शैलचित्रों की एक गुफा है. इस शैलाश्रय में प्राप्त चित्रों का साम्य करमागढ़ की पहाड़ियों से प्राप्त चित्रों से है. इनमें पशु-पक्षियों के चित्र अधिक हैं.
ओंगना (प्रागतिहासिक, पुरातात्विक)
रायगढ़ की धर्मजयगढ़ तहसील के दक्षिण-पूर्व में लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर ‘ओंगना गाँव’ स्थित है. जिसके पास की पहाड़ियों में दो सौ फुट की ऊँचाई पर आदिमानवों का चित्रित शैलाश्रय प्राप्त हुआ है. बीस फीट ऊँचे और तीस फुट चौड़े एक ही शिलाखण्ड में गहरे और हल्के गैरिक रंग में रंगे एक सौ शैलचित्र अंकित हैं. यहाँ चित्रों के ऊपर चित्र अंकित हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि यहाँ आदिमानवों की कई पीढ़ियों ने चित्रांकन किया है. इनमें शिकार, समूह, नृत्य, विचित्र वेशभूषा वाली मानव आकृतियाँ, बैल, गाय आदि उल्लेखनीय हैं.
बोतल्दा (प्रागैतिहासिक, ऐतिहासिक, प्राकृतिक)
रायगढ़ बिलासपुर मार्ग पर लगभग 43 किलोमीटर दूर बोतल्दा’ स्थित है, बोतल्दा की पहाड़ियों में आदिम शैलचित्र, गुफाओं की लम्बी शृंखला, पहाड़ी झरना, गुप्तकालीन सूर्य मंदिर के अवशेष पर्यटकों के आकर्षण के केन्द्र हैं. पहाड़ी के ऊपर तीन विशाल गुफाएँ हैं. गुफा के भीतर जल कुण्ड है, जिसमें वर्षभर पानी रहता है. एक में शिवलिंग स्थापित है.
छोटे पंडरमुड़ा (प्रागैतिहासिक, पुरातात्विक)
खरसिया से 16 किलोमीटर की दूरी पर ‘छोटे पंडरमुड़ा’ से मध्य पाषाणयुगीन मनुष्यों की कब्रगाह प्राप्त हुई है.
मांड जलाशय-
खरसिया नगर से 10 किलोमीटर की दूरी पर शासन के जल संसाधन विभाग द्वारा निर्मित ‘मांड जलाशय’ स्थित है. जलाशय के आसपास का प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटन के लिये उपयुक्त है.
गोमरदा अभयारण्य (वन्य प्राणी अभयारण्य)
रायगढ़ जिले के तहसील सांरगढ़ से सरायपाली (जिला महासमुंद) की ओर जाने वाले मार्ग से 20 किलोमीटर की दूरी पर ‘गोमर्डा अभयारण्य’ स्थित है. लगभग 278 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले अभयारण्य का ज्यादातर भाग पहाड़ी है. बूढ़ाघाट, गोमर्डा, दानव करवट, दैहान आदि पहाड़ियाँ इस अभयारण्य का सौंदर्य हैं, कबरा डोंगर इस अभयारण्य का सबसे ऊंचा इलाका है, इसकी ऊँचाई समुद्र सतह से 579 मीटर है. तेंदुआ, कोटरी, गौर, भालू चीतल, सांभर, जंगली सूअर, लंगूर, मोर तथा विविध पक्षी यहाँ मिलते हैं. अभयारण्य के ही अंतर्गत प्रांतीय मार्ग के दूसरे किनारे पर ‘टमटोरा’ नामक गाँव में ही एक सुंदर पिकनिक स्पॉट और वन विभाग का विश्रामगृह स्थित है.
किंकारी जलाशय-
शासन के जल संसाधन विभाग द्वारा तहसील के बरमकेला विकास खण्ड में निर्मित ‘किंकारी जलाशय’ सुंदर पिकनिक स्पॉट है.
कोडार जलाशय –
सारंगढ़ तहसील मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर जल संसाधन विभाग द्वारा निर्मित ‘घुटका जलाशय’ एक पर्यटन स्थल है.
घुटका जलाशय-
सारंगढ़ तहसील मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर जल संसाधन विभाग द्वारा निर्मित ‘घुटका जलाशय’ एक पर्यटन स्थल है.
पुजारी पाली (ऐतिहासिक, पुरातात्विक )
सारंगढ़ के उत्तर-पूर्व तथा सरिया ग्राम के पश्चिम में लगभग एक-डेढ़ किलोमीटर दूर ‘पुजारी पाली’ इतिहास में कभी ‘शशि नगर’ के नाम से प्रसिद्ध था. इस गाँव में गुप्तकाल का ध्वस्त ‘विष्णु मंदिर’ अपने गौरवशाली अतीत का साक्षी है. यहाँ के प्राचीन मंदिरों में एक ‘महाप्रभु का मंदिर’ दूसरा ‘केंवटिन का मंदिर’ तथा तीसरा ‘रानीझूला मंदिर’ है. ये सभी मंदिर ईंटों द्वारा निर्मित हैं.
Source : raigarh.gov.in