छत्तीसगढ़ का इतिहास : प्रागैतिहासिक काल | CGPSC History Latest General Awareness 2022

छत्तीसगढ़ का प्रागैतिहासिक काल

सभ्यता के आरम्भिक काल में मानव की आवश्यकताएँ न्यूनतम थीं, जो उसे प्रकृति से प्राप्त हो जाती थीं. मनुष्य पशुओं की भाँति जंगलों, पर्वतों और नदी के तटों पर अपना जीवन व्यतीत करता था. नदियों की घाटियाँ प्राकृतिक रूप से मानव का सर्वोत्तम आश्रय स्थल थी. इस काल में मानव कंद-मूल खोदने और पशुओं के शिकार के लिये पत्थरों को नुकीले बनाकर औजार के रूप में प्रयोग करने लगा. पाषाण के प्रयोग के कारण यह युग पाषाण युग के नाम से ज्ञात है. विकास की अवस्था के आधार पर इस युग को चार भागों में विभाजित किया गया है

1).पूर्व पाषाण काल (पूरा पाषाण काल)

  • रायगढ़ जिले के सिंघनपुर की गुफा पाषाण कालीन शैल चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।

2). मध्य पाषाण काल

  • रायगढ़ जिले के कबरा पहाड़ की गुफा से लाल रंग के छिपकली’ घड़ियाल ‘कुल्हाड़ी’ सांभर आदि के चित्रकारी अवशेष मिले है।

3). उत्तर पाषाण काल

  • उत्तर पाषाण काल के लिए बिलासपुर जिले का धनपुर रायगढ़ जिले के महानदी घाटी प्रसिद्ध है।

4). नवपाषाण काल

  • नवपाषाण कालीन साक्ष्य रायगढ़ जिले के टेरम, दुर्ग जिले के अर्जुनी और राजनांदगांव जिले के चितवा डोंगरी से प्राप्त हुए है।

पूर्व पाषाण युग

पूर्व पापाण युग के औजार महानदी घाटी तथा रायगढ़ जिले के सिंघनपुर से प्राप्त हुए हैं. मध्य युग के लम्बे फलक, अर्द्ध चन्द्राकार लघु पाषाण के औजार रायगढ़ जिले के ‘कबरा पहाड़’ से, चित्रित शैलाश्रय के निकट से प्राप्त हुए हैं. उत्तर पाषाण युग के लघुकृत पाषाण औजार महानदी घाटी, बिलासपुर जिले के धनपुर तथा रायगढ़ जिले के सिंघनपुर के चित्रित शैलगृहों के निकट से प्राप्त हुए हैं.

छत्तीसगढ़ से लगे हुए ओडिशा के कालाहांडी, बलांगीर एवं सम्बलपुर जिले की तेल नदी एवं उसकी सहायक नदियों के तटवर्ती क्षेत्र के लगभग 26 स्थानों से इस काल के औजार प्राप्त हुए हैं.

रायगढ़ जिले के सिंघनपुर की गुफा और महानदी घाटी  पाषाण कालीन शैल चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।
विशेष- पत्थर कुदार मिले हैं

नवपापाण युग.

इसके पश्चात् नव पाषाण युग आता है. इस काल में मानव सभ्यता की दृष्टि से विकास कर चुका था तथा उसने कृषि कर्म, पशुपालन, गृह निर्माण तथा बर्तनों का निर्माण, कपास अथवा ऊन कातना आदि कार्य सीख लिया था. इस युग के औजार दुर्ग जिले के अर्जुनी, राजनांदगाँव जिले के चितवा डोंगरी तथा रायगढ़ जिले के टेरम नामक स्थानों से प्राप्त हुए हैं. धमतरी बालोद मार्ग पर लोहे के उपकरण आदि प्राप्त हुए हैं. ये गुफाओं में चित्रकारी करने की कला जानते थे.

रायगढ़ जिले के कबरा पहाड़ की गुफा से लाल रंग के छिपकली’ घड़ियाल ‘कुल्हाड़ी’ सांभर आदि के चित्रकारी अवशेष मिले है।
इसके अलावा मध्य पाषाण काल के महत्वपूर्ण साक्ष्य लंबे फलक वाले औजार, अर्धचंद्राकार लघु पाषाण औजार आदि है।

‘ताम्र’ और ‘लौह युग’

पाषाण युग के पश्चात् ‘ताम्र’ और ‘लौह युग’ आता है. दक्षिण कोसल क्षेत्र में इस काल की सामग्री का अभाव है, किन्तु निकटवर्ती बालाघाट जिले के ‘गुंगेरिया’ नामक स्थान से ताँबे के औजार का एक बड़ा संग्रह प्राप्त हुआ है. लौह युग में शव को गाड़ने के लिये बड़े-बड़े शिलाखण्डों का प्रयोग किया जाता था. इसे ‘महापाषाण स्मारकों’ के नाम से सम्बोधित किया जाता है. इन समाधियों को ‘महापाषाण पट्टतुम्भ’ (डॉलमेन) भी कहा जाता है.

दुर्ग जिले के करहीभदर, चिरचारी और सोरर में पाषाण घेरों के अवशेष मिले हैं. इसी जिले के करकाभाटा से पाषाण घेरे के साथ लोहे के औजार और मृद भाण्ड प्राप्त हुए हैं. धनोरा नामक ग्राम से लगभग 500 महापाषाण स्मारक प्राप्त हुए हैं, जिसका व्यापक सर्वेक्षण प्रोफेसर जे. आर. कांबले एवं डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र ने सर्वप्रथम किया है. निकटवर्ती कालाहाण्डी जिले की नवापारा तहसील में स्थित सोनाभीर नामक ग्राम में पाषाण का घेरा मिला है.

छत्तीसगढ़ का प्रागैतिहासिक काल

प्रागैतिहासिक काल में मनुष्य पर्वत कन्दराओं में निवास करता था, तब उसने इन शैलाश्रयों में अनेक चित्र बनाये थे, जो इसके अलंकरणप्रिय एवं कलाप्रिय होने का प्रमाण है. रायगढ़ जिले के सिंघनपुर तथा कबरा पहाड़ी में अंकित शैल चित्र इसके उदाहरण हैं. कबरा पहाड़ में लाल रंग से छिपकिली, घड़ियाल, सांभर अन्य पशुओं तथा पंक्तिबद्ध मानव समूह का चित्रण किया गया है.

सिंघनपुर में मानव आकृतियाँ, सीधी, दण्ड के आकार की तथा सीढ़ी के आकार में अंकित की गई हैं. अभी हाल के वर्षों में राजनांदगाँव जिले में चितवा डोंगरी, रायगढ़ जिले में बसनाझर, ओंगना, करमागढ़ तथा लेखाभाड़ा में शैलचित्रों की एक शृंखला प्राप्त हुई है. चितवा डोंगरी के शैलचित्रों को सर्वप्रथम श्री भगवान सिंह बघेल एवं डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्र ने उजागर किया. छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण शैल गृहों का विस्तृत विवरण ‘स्थल परिचय’ नामक अध्याय में दिया गया है.

प्रागैतिहासिक काल उसे कहते है जिस काल में मनुष्यों ने उस समय होने वाली किसी भी घटनाओं का कोई लिखित प्रमाण नही रखा । इस काल के अनेक प्रमाण छत्तीसगढ़ के विभिन्न क्षेत्रों से मिले है, इस काल में मनुष्य ( गुफाओ ) कंदराओ में रहता था, तब उसने इन शैलाश्रयों में अनेक चित्र बनाए, इसके अलावा इस काल के विविध औजार एवं स्मारक भी छत्तीसगढ़ में मिले है –

छत्तीसगढ़ में जिन क्षेत्रों से शैलचित्रों की प्राप्ति हुई है यह है : राजनादगॉव के चितवाडोगरी, रायगढ़ के समीप बसनाझर ओगना, करमागढ़ तथा लेखापड़ा, सरगुजा के समीप रामगढ़ पहाड़ी में जोगीमारा गुफा आदि में शैलचित्रो की प्राप्ति हुई ।

जोगीमारा गुफा :

जोगीमरा गुफा जो संसगुजा के समीप रामगढ़ पहाड़ी में रिथत है, जहाँ से अधिकांश चित्र खेरूए रंग के प्राप्त हुए है, जिनमें मुख्य पशु – पक्षी, वृक्ष आदि के साथ सामाजिक जीवन की अभिव्यकित के चित्र मिलते है, इनका काल ईसापूर्व दूसरी या तीसरी शताब्दी मना जाता है।

सिंघनपुर तथा कबरा पहाड :

रायगढ़ के इन स्थानों से शैलचित्र की प्राप्ति हुई है जो है : सिंघनपुर से लाल रंग की चित्रकारी, जिनमें शिकार दृश्य का अंकन मिला है, तथा मानव आकृतियाँ, सीधी डंड़े के आकार की तथा सीढ़ी के आकार में अंक्ति की गई है।

कबरा पहाड़ – यहाँ से भी लाल रंग से विभिन्न चित्र प्राप्त हुए है जो है : छिपकिली, धाड़ियाल, सांभर, अन्य पशुओं तथा पंक्ति बद्ध मानव समूह सहित प्रतीकात्मक चित्रांकन किया है।

प्रागैतिहासिक काल की प्रमुख छत्तीसगढ़ की गुफाओं में से एक है।

यहाँ विभिन्न प्रकार के शैल चित्र प्राप्त हुये है जो प्रागैतिहासिक काल में होने वाली विभिन्न क्रियाओं की जानकारी प्राप्त होती है।

  • काबरा शैलाश्रय के चित्रों में चित्रण की सुंदरता जिले के अन्य सभी शैल चित्रों की तुलना में बेहतर है।
  • मध्य पाषाण काल के लंबे-चौड़े औजार, अर्धचंद्राकार लघु पत्थर चित्रित शैल आश्रयों के पास पाए गए।
  • जिसका उपयोग मानव द्वारा खुदाई या शिकार के लिए किया जाता था।
  • पुरातत्वविदों ने मध्य पाषाण युग को 9 हजार ईसा पूर्व और 4 हजार ईसा पूर्व के बीच माना है।
  • इस अवधि के दौरान आदिम मावन ने जानवरों को पालतू बनाना,पहिया को नवपाषाण काल ​​का प्रमुख आविष्कार माना जाता है।
  • नदी घाटियाँ सबसे अच्छा मानव आश्रय स्थल रही हैं। और यह क्षेत्र महानदी घाटी में आता है।

राजनादगाँव के चितवाडोंगरी –

इन सभी क्षेत्र से जोगीमारा गुफाओ में शैल चित्रों की प्राप्ति हुई है जो हैः – रायगढ़ के समीप बसनाझर, ओंगना, करमागढ़ तथा लेखापाडा, सगुजा के समीप रामगढ़ पहाडी से प्राप्त हुए है।

बिलासुपर जिले के धनपुर तथा रायगढ़ जिले के सिंधनपुर में स्थित चित्रित शैलाक्षय के निकट से उत्तर पाषाण युग लघुकृत पाष्ण औजार प्राप्त हुए है।

नव पाषाण काल के साश्य हमें – अर्जुनी ( चित्रित हथौड़े ) जो दुर्ग मे स्थित है, राजनांदगाँव के पास बोनटीला मे, चितवाडोंगरी तथा रायगढ़ के टेरम नामक जगहॉ से मिले है।

महापाषण स्मारक : जो हमें दुर्ग के पास करही भदर, चिरचारी और सोरर में पाषण घेरों के अवशेष मिले है, ( जिसे शव गाड़ने के लिए बड़े बड़े शिलाखंडो का प्रयोग किया जाता था। जिसे महापाषाण स्मारक के नाम से जाना जाता था।

काष्ठ स्तम्भ : वीर नायकों के सम्मान में बस्तर क्षेत्र से अनेक काष्ठ स्तम्भ प्राप्त हुए है जो कि उनके सम्मान मे स्थापित किए गये थे जो हैः मसेनार डिलामिली, चित्रकूट किलेपाल, चिंगेनार आदि से स्मारक प्राप्त हुए है।

पूर्व पाषाण युग – महानदी घाटी, सिंघनपुर
मध्य पाषाण युग – कबरा पहाड़
उत्तर पाषाण युग – महानदी, घाटी, घनपुर, सिंघनपुर
नव पाषाण युग – अर्जुनी, चितवा डोंगरी, बोनलोला, टेरम
लौह युगीन पाषाण स्तंभ – करही भदर , चिररारी, सोरर, करका भाटा, धनोरा
छत्तीसगढ़ का प्रागैतिहासिक काल

यह भी पढ़ें : छत्तीसगढ़ प्रदेश मे वन संपदा

अन्य तथ्य-
1.पाषाण घेरे
बालोद (करहिभदर,चिरचारी,सोरर)- शव को दफना कर बड़े पत्थरों से ढक दिया जाता था।
कोंडागांव(गढ़धनोरा)- मध्य पाषाण युगीन 500 स्मारक प्राप्त हुए हैं ।
इसकी खोज रमेन्द्र नाथ मिश्र व कामले ने किया है।

2.शैल चित्र-
-कबरापहाड़ (रायगढ़)-सर्वाधिक शैल चित्र
-सिंघनपुर की गुफा(रायगढ़)- मानवाकृतियाँ,सीढ़ीनुमा और बासनुमा आखेट करता हुआ मनुष्य का शैल चित्र है।

3.लोहे का साक्ष्य –
-सरगुजा(जोगीमारा,सीताबेंगरा)
-करहिभदर,चिरचारी,सोरर,करकाभाठा(बालोद)-लोहे के औजार व मृदभांड प्राप्त हुआ है।

महत्वपूर्ण बिंदु  प्रागैतिहासिक काल

  • अंबिकापुर के जिला मुख्यालय शहर से लगभग 40 किमी दूर और रायपुर से लगभग 350 किमी दूर छत्तीसगढ़ सरकार के पुरातात्विक विभाग द्वारा महेशपुर क्षेत्र में रेणुका नदी (जिसे स्थानीय लोगों द्वारा रेणु कहा जाता है) के तट पर उत्खनन सर्वेक्षण के दौरान उपकरण और कलाकृतियाँ मिली थीं।
  • छत्तीसगढ़ में मध्य पाषाण से लेकर ऐतिहासिक काल तक के शैल चित्र बहुत समृद्ध हैं और जैसा कि ऊपर कहा गया है, कुछ शैल चित्र प्रागैतिहासिक काल की भी हैं।जो आरंभिक मनुष्य के जीवन के तरीकों और कलाओं पर कई शैल चित्र रोचक प्रकाश डालते हैं।
  • छत्तीसगढ़ राज्य में अब तक के सबसे विपुल रॉक कला स्थल सिंघनपुर, काबरा पहाड़, बसनाझर, ओंगना, कर्मगढ़, खैरपुर, बोटलडा, बस्तरखारोल, अमरगुफा, गाताडीह, सिरोली डोंगरी, बैनी पहाड़ आदि में रायगढ़ जिले में स्थित हैं।
  • इनमें से कुछ पहले से ही ज्ञात थे और कुछ को जिले में दो साल के सर्वेक्षण के दौरान पता चला था। अधिकांश स्थलों पर सांप, पक्षी, हाथी, कूबड़ वाले मवेशी, जंगली भैंस, जंगली सूअर, हिरण, गैंडा, मानव आकृतियाँ, स्तनधारी, शिकार के दृश्य, ज्यामितीय डिज़ाइन, कृषि गतिविधियों के दृश्य और कई रंगों में नृत्य के दृश्य प्राप्त किये गए हैं।
  • कांकेर जिले में कुछ शैल चित्र उडुका, गरगोड़ी, खैरखेडा, कुलगाँव, गोटिटोला आदि के आश्रयों में स्थित हैं। इन आश्रयों में मानव आकृतियाँ, पशु आकृतियाँ, ताड़ के निशान, बैलगाड़ी आदि को आमतौर पर चित्रित किया जाता है। कोरिया जिले के घोडसर और कोहबर के रॉक कला स्थल भी उल्लेखनीय हैं। इनमें मानव आकृतियों, जानवरों की आकृतियां, दिन के जीवन के दृश्य, आमतौर पर सफेद रंग में चित्रित किए गए हैं।
  • चितवा डोंगरी (दुर्ग जिला) में एक चीनी मानव आकृति के गधे पर सवारी करने के दिलचस्प चित्रण, ड्रेगन की तस्वीरें और कृषि दृश्यों को दर्शाया गया है।उपर्युक्त स्थलों के अलावा, बस्तर जिले में लिमदारिहा और सितलेखनी, ओगड्डी आदि भी है।
  • सरगुजा जिले में भी कई दिलचस्प शैल चित्रों की प्राप्ति हुई है। प्राप्त शैल चित्रों में पचास से अधिक संख्याएँ जो छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित मध्य पुरापाषाण काल ​​से लेकर ऐतिहासिक काल तक जानकरी देती गई।
  • हजारों साल पहले की प्रागैतिहासिक काल की कलाकृतियां प्राप्त हुई है जो हजारों साल पुरानी है चट्टानों पर अधिकांश पेंटिंग और कला हमें प्रारंभिक मानव के जीवन में एक अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। रायगढ़ में आपको अमारगुफा, भंवरखोल, बैनीपहाड़, बसंजर, काबरा पहाड़, सिंघानपुर औंगना, कर्मगढ़, खैरपुर, बोटलडा, सिरोली डोंगरी, आदि में कुछ सबसे दिलचस्प और दिलचस्प टुकड़े मिलेंगे।

छत्तीसगढ़ में पाषाण कालीन साक्ष्य एक नजर में

  • पूर्व पाषाण काल : रायगढ़ के सिंघनपुर, कबरा पहाड़, बोतल्दा, छपामाडा , भंवरखोल, जीधा, सोनबससा
  • मध्य पाषाण काल : गढ़घनौरा, गढ़चंदेला, कातीपुर, राजपुर, भातेवाड़ा, खड़ागघाट, घाटलोहांग
  • उत्तर पाषाण काल : रायगढ़ के कबरा पहाड़, सिंघनपुर, महानदी घाटी, धनपुर, करमागढ़, बसनाझर, आंगना, बोलदा
  • नवपाषाण काल : अर्जुनी ( दुर्ग ), टेरम ( रायगढ़ ), बोनटीला, चितवा डोंगरी ( राजनांदगाँव )
  • महापाषाण युग : करही भदर, चिररारी ( दुर्ग )
  • राज्य में सर्वाधिक शैलचित्रः रायगढ़ जिले से प्राप्त
  • प्राचीनतम शैलाश्रय : सिंघनपुर ( रायगढ़ )
  • प्रागैतिहासिक सबसे प्राचीन गुफा सिंघनपुर की गुफा फिर कबरा पहाड़ की गुफा।
  • सर्वाधिक शैल चित्र कबरापहाड़ की गुफा।
  • सर्वाधिक जानकारी कबरा पहाड़ की गुफा।
  • सबसे लंबी गुफा बोतल्दा की गुफा ।
  • इस काल के सर्वाधिक शैलचित्र रायगढ़ जिले से मिले हैं
  • नवपाषाणिक अवशेषों की सर्वप्रथम जानकारी डॉक्टर रविंद्र नाथ मिश्रा डॉक्टर भगवान सिंह ने दिया।
error: Content is protected !!