छत्तीसगढ़ पर्यटन : जिला बस्तर CGPSC 2021-22 | VYAPAM | POLICE SI | Latest General Awareness

छत्तीसगढ़ पर्यटन : बस्तर जिले के प्रमुख पर्यटन क्षेत्र [Tourist Places in Batar District]

जगदलपुर : एक परिचय

राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 43 पर रायपुर से 299 किलोमीटर दूर इन्द्रावती तट पर ‘जगदलपुर’ नगर बसा है, जो बस्तर संभाग का जिला मुख्यालय है. जगदलपुर से निकटतम हवाई एवं रेलवे स्टेशन विशाखापत्तनम् एवं रायपुर है, सड़क मार्ग से यह विशाखापत्तनम्, हैदराबाद, नागपुर तथा रायपुर से जुड़ा है. नगर के महत्वपूर्ण स्थलों में काकतियों का एकमात्र राजमहल, राजमहल परिसर में उनकी आराध्य देवी दन्तेशवरी का मंदिर, दलपत सागर (14वें काकतीय राजा दलपत देव द्वारा अपनी रानी ‘समुद्र देवी’ हेतु निर्मित), एन्थ्रोपोलॉजिकल म्यूजियम, चर्च आदि अन्य स्थल हैं.

जिला बस्तर के पर्यटन स्थल [District Bastar tourist places]
जिला बस्तर के पर्यटन स्थल [District Bastar tourist places]

एन्थ्रोपोलॉजिकल म्यूजियम-

सन् 1972 में स्थापित इस संग्रहालय का मूल उद्देश्य बस्तर तथा सीमा से लगे रायपुर-दुर्ग जिलों सहित, आंध्र प्रदेश, ओडिशा एवं महाराष्ट्र के आदिवासी जनजीवन के आपसी प्रभावों का अध्ययन करना है, संग्रहालय में वस्तर की विभिन्न जाति जनजाति के लोगों के दैनिक जीवन में उपयोगी वस्तुओं सहित संस्कृति, संस्कारों, भावनाओं और मनोरंजन के रूप में काम में आने वाली वस्तुओं को प्रत्यक्ष एवं छायाचित्रों के माध्यम से देखा जा सकता है. इसके अलावा बस्तर की पुरातत्व सम्पदा को संग्रहीत करने के उद्देश्य से प्रदेश शासन के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने फरवरी 1988 में जिला पुरातत्व संग्रहालय की स्थापना की है. संग्रहालय में मुख्य रूप से प्रतिमाओं सहित शिलालेखों का संग्रह है, जो करुसपाल, केशरपाल, छोटे डोंगर, चित्रकोट आदि स्थानों से संग्रहीत किये गये हैं. इन स्थलों के अलावा जगदलपुर में शहीद पार्क है जो पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है.

बारसूर (धार्मिक, ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक)

जगदलपुर से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित धार्मिक, ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टिकोण से बस्तर का महत्वपूर्ण स्थल वारसूर ||वीं शताब्दी ईस्वी के आरम्भ में नागवंश के बस्तर में अभ्युदय पर उनकी राजधानी बना. तत्कालीन अभिलेखों से विदित होता है कि 11वीं शताब्दी में इस क्षेत्र को ‘चक्रकूट’ या ‘भ्रमर कोट्स’ कहा जाता था. बारसूर में नागयुगीय अवशेषों से ऐसा प्रतीत होता है कि इस काल में धर्म, दर्शन तथा स्थापत्यकला की अत्यधिक उन्नति हुई थी. ऐसा मानना है कि केवल बारसूर में ही 147 मंदिर एवं इतने ही तालाव थे, किन्तु आज यहाँ नागयुगीन तीन मंदिर मामा-भांजा मंदिर, बत्तीसा मंदिर, चन्द्रादित्येश्वर मंदिर यथावत् दृष्टि से इन ध्वंस मंदिरों की वास्तु संरचना एवं कला शैली अद्वितीय है. यहाँ एक पुरातत्व संग्रहालय है. जिसमें वारसूर के आसपास खुदाई में प्राप्त प्राचीन पुरावशेष रखे हैं.

कोण्डागाँव (शिल्प ग्राम)

जगदलपुर से रायपुर की ओर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 43 पर 76 किमी दूर कोण्डागाँव में प्रख्यात बस्तर शिल्प पर आधारित ‘शिल्प ग्राम’ में घड़वा, लोहा, कांसा आदि के धातुशिल्प सहित काष्ठ, पाषाण, टेराकोटा और वाँस की उत्कृष्ट एवं कलात्मक वस्तुयें बनती एवं विक्रय की जाती हैं. यहाँ निर्मित वस्तुयें विदेशों को भेजी जाती हैं.

नारायणपाल (ऐतिहासिक, धार्मिक)-

नारायणपाल मंदिर बस्तर की विरासत में अपने सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक मूल्य के लिए जाने-माने है। जगदलपुर के उत्तर-पश्चिमी तरफ, चित्रकोट झरने से जुड़ा हुआ, नारायणपाल नाम का एक गांव, इंद्रवती नदी के दूसरे किनारे पर स्थित है। इस गांव में एक प्राचीन शानदार विष्णु मंदिर है जो 1000 साल पहले बनाया गया था और वास्तुकला का एक सुंदर आकृति है। विष्णु मंदिर इंद्रवती और नारंगी नदियों के संगम के निकट स्थापित किया गया है और यह 11 वीं शताब्दी तक है। आसपास के विष्णु मंदिर, मंदिर की स्थापना के बाद एक छोटे से गांव को नारायणपुर के रूप में नामित किया गया, इस बीच, इसे नारायणपाल के नाम से जाना जाने लगा। भारत के खजुराहो मंदिर के समकालीन, नारायणपाल मंदिर पूरे बस्तर जिले का एकमात्र मंदिर है जहां भगवान विष्णु की मूर्ति शामिल है। चिंदक राजवंश की रानी मुमुंददेवी द्वारा निर्मित, नारायणपाल मंदिर का वास्तुकला की चालुक्य शैली का प्रभाव है।

जगदलपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर इन्द्रावती नदी के तट पर ‘नारायणपाल’ एक ग्राम है. नारायणपाल में दो मंदिर स्थित हैं-विष्णु मंदिर तथा भद्रकाली का मंदिर. वर्तमान में जो विष्णु मंदिर है, वस्तुतः शिव मंदिर है, परवर्तीकाल में इसमें विष्णु की प्रतिमा प्रतिष्ठित कराई गई है. बेसरशैली के उच्चशिखर वाले, ऊँची जगती पर बने इस मंदिर का द्वार अलंकृत है. इस मंदिर में लगे दो शिलालेखों से पता चलता है कि विष्णु मंदिर एवं भद्रकाली मंदिर 11वीं शताब्दी के वास्तुशिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण हैं,

भोगापाल (ऐतिहासिक, पुरातात्विक)-

कोण्डागाँव से 51 किलोमीटर पर नारायणपुर (तहसील) से 25 किमी दूर ग्राम भोंगापाल स्थित है जहाँ ईंटों से निर्मित एक टीला विद्यमान है, जो सम्भवतः मौर्यकालीन है जिससे बुद्ध की गुप्तकालीन (5-6वीं सदी) आसनस्थ प्रभामण्डल युक्त प्रतिमा प्राप्त हुई है. इसी टीले के समीप नाले के दूसरी तरफ सप्तमातृका प्रतिमा प्राप्त हुई है, जो कुषाणकालीन प्रतीत होती है. संभवतः स्थल पर ‘सिरपुर’ की तरह बौद्ध विहार रहा होगा.

केशकाल (प्राकृतिक)-

‘केशकाल’ की घाटी राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक-43 पर कांकेर से जगदलपुर की ओर बढ़ने पर लगभग 5 किमी की घाटी पड़ती है जिसे बस्तर का प्रवेश द्वार’ कहा जाता है. यह घाटी समुद्र से 728 मीटर की ऊँचाई पर है. इसके नाम के सम्बन्ध में एक तर्क यह है कि जीवन और मृत्यु के मध्य केश (बाल) की दूरी रहने के कारण इस घाटी का नाम ‘केशकाल’ पड़ा होगा. सूर्य की रोशनी में घाटी का विहंगम दृश्य या चाँदनी रात में घाटी पर वाहन द्वारा ऊँची पर्वत श्रेणी और गहराई के मध्य सर्पाकार मार्ग में चढ़ना रोमांचकारी एवं अद्वितीय होता है. घाटी के मध्य में ‘तेलीन माता का मंदिर’ है, जहाँ यात्रियों को रुकना आवश्यक होता है.

गढ़ घनोरा (ऐतिहासिक, धार्मिक)

रायपुर से, राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 43 पर केशकाल से लगभग 12 किमी पश्चिम में ‘गढ़धनोरा’ नामक ग्राम पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल है. गढ़ धनोरा में ऐसे कई मंदिरों का पता चला है जो पूर्णरूपेण भूमिगत थे. उत्खनन पश्चात् ज्ञात हुआ कि यहाँ भूमि में स्थापत्य का अपार भणडार छिपा पड़ा है. बस्तर रियासत के तृतीय प्रशासक रावबहादुर बैजनाथ पण्डा (1908-10) ने यहाँ एक टीले पर मलवा सफाई करवा कर ईंटों का शिव मंदिर प्राप्त किया था. तत्पश्चात् पुरातत्व विभाग ने यहाँ प्राचीन मंदिरों के अनेक समूह मलवा सफाई पर प्राप्त किये जिनमें शिव मंदिर समूह. विष्णु मंदिर समूह, मोबरहीनपारा मंदिर समूह, बंजारिन मंदिर समूह आदि प्रमुख हैं.

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‘कांगेर घाटी’ राष्ट्रीय उद्यान (वन्य प्राणी उद्यान)-

छत्तीसगढ़ के 03 राष्ट्रीय उद्यानों में से एक है-कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान जो बस्तर जिले में स्थित है. जगदलपुर से दक्षिण पूर्व में ‘जगदलपुर-कोटा, हैदराबाद’ मार्ग पर 26वें किलोमीटर से राष्ट्रीय उद्यान की सीमा प्रारंभ होती है. समुद्र तल से 38 से 781 मीटर ऊँचाई तक 200 वर्ग किमी भू भाग में गहन वनों से आच्छादित चोटियों, खाइयों, गुफाओं, जल प्रपातों से युक्त राष्ट्रीय उद्यान बाह्य प्रभाव से अछूता है. यहाँ शेर, तेंदुआ, चीतल, सांभर, हिरण, भालू, सिगिंग हिल मैना एवं विविध सरीसृप मिलते हैं. कांगेर घाटी में ही कांगेर-खोलाब के संगम पर ‘भैसादरहा मगर संरक्षण क्षेत्र’ घोपित किया गया है. राष्ट्रीय उद्यान में जाने का सर्वश्रेष्ठ समय फरवरी से मई अंत तक होता है. पर्यटकों के लिए निरीक्षण बिन्दु बनाये गये हैं. भैंसा दरहा के अतिरिक्त खोलाब (शबरी) कांगेर संगम, कोडरी बहरा-कांगेर संगम पर भी मगरों के पाये जाने की सूचना है, उद्यान के प्रमुख पर्यटन बिंदु तीरथगढ़ प्रपात, झुलनादरहा, शिवगंगा जलकुंड, कांगेर करपन गुफा, कोटमसर गुफा, कांगेर धारा झरना, दंडक गुफा, भीमकाय वृक्ष, हाथी पखना, परेवा बाड़ी जलकुंड, देवगिरी गुफा, कैलाश गुफा, कैलाश झील, कोटरी बहार झील, दीवान डोंगरी, मनोरम दृश्य, मैसा दरहा झील, कांगेर खोलाब संगम, खोलाव का विहंगम दृश्य आदि हैं.

कांगेर घाटी राष्ट्रीयउद्यान का नाम कांगेर नदी से निकला है, जो इसकी लंबाई में बहती है। कांगेर घाटी लगभग 200 वर्ग किलोमीटर में फैला है |
कांगेर घाटी ने 1982 में एक राष्ट्रीय उद्यान की स्थिति प्राप्त की। ऊँचे पहाड़ , गहरी घाटियाँ, विशाल पेड़ और मौसमी जंगली फूलों एवं वन्यजीवन की विभिन्न प्रजातियों के लिए यह अनुकूल जगह है । कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान एक मिश्रित नम पर्णपाती प्रकार के वनों का एक विशिष्ट मिश्रण है जिसमे साल ,सागौन , टीक और बांस के पेड़ बहुताइत में है। यहाँ की सबसे लोकप्रिय प्रजातियां जो अपनी मानव आवाज के साथ सभी को मंत्रमुग्ध करती हैं वह बस्तर मैना है। राज्य पक्षी, बस्तर मैना, एक प्रकार का हिल माइन (ग्रुकुला धर्मियोसा) है, जो मानव आवाज का अनुकरण करने में सक्षम है। जंगल दोनों प्रवासी और निवासी पक्षियों का घर है।

वन्यजीवन और पौधों के अलावा, यह राष्ट्रीय उद्यान तीन असाधारण गुफाओं का घर है- कुटुम्बसर, कैलाश और दंडक-स्टेलेग्माइट्स और स्टैलेक्टसाइट्स के आश्चर्यजनक भूगर्भीय संरचनाओं के लिए प्रसिद्ध है। राष्ट्रीय उद्यान ड्रिपस्टोन और फ्लोस्टोन के साथ भूमिगत चूना पत्थर की गुफाओं की उपस्थिति के लिए जाना जाता है। स्टेलेग्माइट्स और स्टैलेक्टसाइट्स का गठन अभी भी बढ़ रहे हैं। राष्ट्रीय उद्यान में गुफा, वन्यजीवन की विभिन्न प्रजातियों के लिए आश्रय प्रदान करते हैं। राष्ट्रीय उद्यान के पूर्वी हिस्से में स्थित भैंसाधार में रेतीले तट देखे जाते हैं जहां मगरमच्छ (क्रोकोड्लस पालस्ट्रिस) इसका उपयोग मूलभूत उद्देश्यों के लिए करते हैं।

तीरथगढ़ झरना कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है| इसके साथ ही साथ केंजरधार और भैंसाधार मगरमच्छ पार्क के लिए लोकप्रिय पर्यटक स्थल हैं। पार्क की प्राकृतिक सुंदरता का पता लगाने के लिए जिप्सी सफारी पर्यटकों के लिए उपलब्ध है।

कैलाश गुफा

बस्तर घने जंगलों, सर्पिन घाटियों, नदियों, के साथ एक रहस्यमय भूमि है। कैंगेर वैली नेशनल पार्क में तीन असाधारण गुफाएं हैं, कैलाश गुफा इस क्षेत्र की सबसे पुरानी गुफा है। इस गुफा की खोज 22 मार्च 1 99 3 में की गयी | बस्तर के भूमिगत गुफाओं में कैलाश गुफा में सबसे शुरुआती चूना पत्थर के गठन हैं जो बहुत आकर्षक हैं। इस गुफा की ज्ञात लंबाई 120 फीट की गहराई के साथ 1000 फीट है। लुभावनी चूना पत्थर संरचनाओं के कारण समान रूप से शिवलिंग – गुफा के अंदर स्टैलेक्टसाइट्स और स्टालाग्माइट्स इसे कैलाश की प्रतिकृति देते हैं। इन ड्रिपस्टोन संरचनाओं को स्थानीय लोगों द्वारा पूजा भी की जाती है।

कुटुम्बसर और दंडक गुफाएं कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान के अन्य आकर्षण हैं। गाइड, टॉर्च पर्यटकों के लिए उपलब्ध हैं। मानसून के दौरान, कैलाश गुफा बंद हो जाती है और हर साल 16 अक्टूबर से 15 जून तक फिर से खोल दी जाती है। अब, जिप्सी सफारी भी अन्य जगहों की सुंदरता का पता लगाने के लिए पर्यटकों के लिए उपलब्ध है|

चित्रकोट जलप्रपात

चित्रकोट जलप्रपात भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर ज़िले में इन्द्रावती नदी पर स्थित एक सुंदर जलप्रपात है। इस जल प्रपात की ऊँचाई 90 फीट है।इस जलप्रपात की विशेषता यह है कि वर्षा के दिनों में यह रक्त लालिमा लिए हुए होता है, तो गर्मियों की चाँदनी रात में यह बिल्कुल सफ़ेद दिखाई देता है।

जगदलपुर से 40 कि.मी. और रायपुर से 273 कि.मी. की दूरी पर स्थित यह जलप्रपात छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा, सबसे चौड़ा और सबसे ज्यादा जल की मात्रा प्रवाहित करने वाला जलप्रपात है। यह बस्तर संभाग का सबसे प्रमुख जलप्रपात माना जाता है। जगदलपुर से समीप होने के कारण यह एक प्रमुख पिकनिक स्पाट के रूप में भी प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका है। अपने घोडे की नाल समान मुख के कारण इस जाल प्रपात को भारत का निआग्रा भी कहा जाता है। चित्रकूट जलप्रपात बहुत ख़ूबसूरत हैं और पर्यटकों को बहुत पसंद आता है। सधन वृक्षों एवं विंध्य पर्वतमालाओं के मध्य स्थित इस जल प्रपात से गिरने वाली विशाल जलराशि पर्यटकों का मन मोह लेती है।

‘भारतीय नियाग्रा’ के नाम से प्रसिद्ध चित्रकोट प्रपात वैसे तो प्रत्येक मौसम में दर्शनीय है, परंतु वर्षा ऋतु में इसे देखना अधिक रोमांचकारी अनुभव होता है। वर्षा में ऊंचाई से विशाल जलराशि की गर्जना रोमांच और सिहरन पैदा कर देती है।वर्षा ऋतु में इन झरनों की ख़ूबसूरती अत्यधिक बढ़ जाती है।जुलाई-अक्टूबर का समय पर्यटकों के यहाँ आने के लिए उचित है।चित्रकोट जलप्रपात के आसपास घने वन विराजमान हैं, जो कि उसकी प्राकृतिक सौंदर्यता को और बढ़ा देती है।रात में इस जगह को पूरा रोशनी के साथ प्रबुद्ध किया गया है। यहाँ के झरने से गिरते पानी के सौंदर्य को पर्यटक रोशनी के साथ देख सकते हैं।अलग-अलग अवसरों पर इस जलप्रपात से कम से कम तीन और अधिकतम सात धाराएँ गिरती हैं।

कोटमसर गुफा

कोटसर गुफा को शुरू में गोपांसर गुफा (गोपन = छुपा) नाम दिया गया था, लेकिन वर्तमान नाम कोटसर अधिक लोकप्रिय हो गया क्योंकि गुफा ‘कोटसर’ नामक गांव के पास स्थित है। कोटसर गुफा भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ में जगदलपुर के पास स्थित है। कोटमसर गुफा पर्यावरणीय पर्यटनमें रुचि रखने वाले लोगों के लिए एक प्रमुख आकर्षण है। यह कोलेब नदी की एक सहायक नदी केगर नदी के किनारे स्थित केंजर चूना पत्थर बेल्ट पर गठित एक चूना पत्थर गुफा है। प्रवेश निर्देशांक 18052’0 9 “एन हैं 81056’05 “ई (डब्लूजीएस 84) और यह समुद्री स्तर से 560 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। एक पहाड़ी की दीवार में एक लंबवत फिशर गुफा के लिए मुख्य प्रवेश के रूप में कार्य करता है, और वहां से पर्यटकों की सुविधा के लिए गुफा के अंत तक एक ठोस मार्ग बना दिया गया है। गुफा की मुख्य सुरंग कई पार्श्व और नीचे के मार्गों के साथ लगभग 200 मीटर लंबी है। विभिन्न प्रकार के स्लेथोथेम मनोरम दृश्य पेश करते हैं। वायु और जल तापमान क्रमश: 28.25 ± 1.23 और 26.33 ± 0.96 डिग्री सेल्सियस के वार्षिक औसत के साथ अपेक्षाकृत स्थिर है (हवा के लिए रेंज = 25.0-32.7_C; पानी के लिए 22.9-29.3 डिग्री सेल्सियस) ।गुफा मानसून के मौसम में लगातार बाढ़ के अधीन है, जो आम तौर पर जून के मध्य में शुरू होता है और अक्टूबर के मध्य तक जारी रहता है। साइट इस अवधि के दौरान पर्यटकों के लिए बंद है। पूरे साल सीपेज द्वारा खिलाए गए विभिन्न जल पूल भी इस गुफा में मौजूद हैं

तीरथगढ जलप्रपात

जगदलपुर से 35 किलामीटर की दूरी पर स्थित यह मनमोहक जलप्रपात पर्यटकों का मन मोह लेता है। पर्यटक इसकी मोहक छटा में इतने खो जाते हैं कि यहाँ से वापिस जाने का मन ही नहीं करता। मुनगाबहार नदी पर स्थित यह जलप्रपात चन्द्राकार रूप से बनी पहाड़ी से 300 फिट नीचे सीढ़ी नुमा प्राकृतिक संरचनाओं पर गिरता है, पानी के गिरने से बना दूधिया झाग एवं पानी की बूंदों का प्राकृतिक फव्वारा पर्यटकों को मन्द-मन्द भिगो देता है। करोड़ो वर्ष पहले किसी भूकंप से बने चन्द्र-भ्रंस से नदी के डाउन साइड की चट्टाने नीचे धसक गई एवं इससे बनी सीढ़ी नुमा घाटी ने इस मनोरम जलप्रपात का सृजन किया होगा।

तामड़ा घुमर

बस्तर प्रकृति की विशाल सुंदरता के लिए जाना जाता है। मारडूम के पास चित्रकोट के रास्ते पर, एक बारहमासी झरना, तमड़ा घुमर है। यह झरना इंद्रवती नदी से सीधे 100 फीट से गिरकर बहती है। सभी विशाल और अद्भुत झरने के साथ, तमड़ा घुमर चुपचाप घाटियों के बीच अपनी उपस्थिति को चिह्नित करता है। बरसात के मौसम के दौरान, हरियाली और गर्मी के बादल सुंदरता को बढ़ाते हैं। इस क्षेत्र के चारों ओर मोर की उपस्थिति के कारण, यह झरना स्थानीय रूप से मयूर घुमर के रूप में जाना जाता है।
चित्रधारा, तमड़ा घुमर और मेहेंदरी घुमर चित्राकोट झरने के लिए सर्किट को और भी सुखद और आनंददायक बनाते हैं।

मेन्द्री घुमर जलप्रपात

मेन्द्री घुमर जलप्रपात  विशाल चित्रकोट झरने के रास्ते पर एक सुंदर मौसमी झरना है। प्रसिद्ध रूप से ‘घाटी की धुंध’ के रूप में जाना जाता है, मेहेंदरी घुमर के पास एक सुंदर घाटी है। यह 125-150 फीट ऊंचाई से गिरने वाली हरी घाटी के बीच चुपचाप अपनी उपस्थिति को चिह्नित करता है। शीर्ष से घने वन क्षेत्र को देखते हुए शांति महसूस कर सकती है।

मेन्द्री घुमर जलप्रपात  में सुंदर सुंदरता और बूंदा -बांदी इसे देखने के लिए एक आकर्षक अनुभव बनाती है। चित्रधारा, तामड़ा घूमर और मेन्द्री घुमर जलप्रपात चित्राकोट झरने के लिए सर्किट को और भी सुखद और आनंददायक बनाते हैं।

चित्रधारा जलप्रपात

बस्तर में झरनों की एक श्रृंखला है, उनमें से कई बारहमासी हैं, जबकि कुछ गर्मियों के दौरान पानी से वंचित हैं, लेकिन बारिश और सर्दियों के दौरान उनकी सुंदरता अद्वितीय है। चित्रधारा बाद की श्रेणी में आता है।

चित्रधर झरना बस्तर की सुंदरता का एक अद्भुत नमूना है। चित्रकोट झरने के रास्ते पर, एक छोटी सी पहाड़ी के घाटी के माध्यम से एक छोटी नदी बहती है और यह किसानों की सोपानी पात की शुरुआत है। इस कारण से, बारिश के दौरान पानी होता है लेकिन गर्मियों में, इसकी उत्कृष्टता फीकी हो जाती है।

झरने के ऊपरी हिस्से में, भक्तों ने एक शिव मंदिर और झरना के आकर्षण को देखने के लिए एक प्रेक्षण स्थान बनाया है। यह झरना 50 फीट की ऊंचाई से गिरता है। अगला मुख्य झरना 100 फीट की ऊंचाई से सोपानी पात में बाईं ओर से नीचे की ओर बहता है और पहाड़ियों की ओर बढ़ता है।

एक पिकनिक स्पॉट के रूप में भी प्रसिद्ध, यह झरना पोटानार के गांव के शांत और सुदूर स्थान पर स्थित है। चित्रधारा, तामड़ा घुमर और मेहेंदरी घुमर चित्रकोट झरने के दौरे को और भी सुखद और आनंददायक बनाते हैं।

‘कांगेर धारा’ (प्राकृतिक)

तीरथगढ़ के पश्चात् कांगेर नदी का जल कांगेर राष्ट्रीय उद्यान के अन्य 8-10 स्थानों पर गिरता है और सुंदर जल प्रपात का रूप धारण करता है इनमें से ही एक प्रपात है ‘कांगेर धारा’. यह खूबसूरत झरने के रूप में आकर्षण का केन्द्र है.

हाथी दरहा (प्राकृतिक)

जगदलपुर से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर जगदलपुर बारसूर मार्ग पर 8वें किलोमीटर पर ग्राम मेंदरी के पश्चिम में गहरी खाई है, जिसे ‘हाथी दरहा’ के नाम से जाना जाता है. खाई लगभग 150-200 फुट गहरी है, जिसका आकार रोमन लिपि के ‘यू’ अक्षर जैसा है, वसंत में छोटे रंग-बिरंगे जंगली फूल खाई को रंगीन कर देते हैं. ‘हाथीदरहा’ का मुख्य आकर्षण यहाँ सौ फुट से अधिक ऊँचाई से ‘मटनार नाले’ का बना ‘प्रपात’ है. मुख्य प्रपात के अलावा गहरी खाई में अनेक स्थानों से पतले पतले प्रपात भी देखे जा सकते हैं, ‘हाथीदरहा’ को भेदरी घूमर’ भी कहा जाता है,

रानी दरहा (प्राकृतिक)

‘जगदलपुर कोटा मार्ग’ पर दंतेवाड़ा जिले के कोंटा तहसील के विकास खण्ड ‘छिंदगढ़’ से 30 किमी दूर ‘ग्राम तालनार’ के समीप यह दरहा है. ‘रानी दरहा’ के आसपास शबरी का जल अत्यधिक गहराई के कारण ठहरा हुआ सा प्रतीत होता है. किंवदंती के अनुसार युद्ध काल में पद्मावती नामक रानी ने पीछा करते हुये दुश्मनों के हाथों में पड़ने के बजाय, इसी स्थान से शबरी में कूद कर प्राणोत्सर्ग कर लिया था. इसलिए इसे ‘रानी दरहा’ कहा जाता है, इसके अतिरिक्त बस्तर में इंद्रावती तट पर ग्राम मेंटावाड़ा के निकट ‘झापी दरहा’ और करंजी के निकट ‘जुगाली दरहा’ भी प्रसिद्ध हैं.

खुरशैल वैली (प्राकृतिक)-

समुद्र सतह से अधिकतम 839 मीटर और न्यूनतम 480 मीटर ऊँचा 2840 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली सागौन, बाँस के मिश्रित प्रजाति के गहन वनों से आच्छादित यह घाटी वनों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है. किन्तु वर्तमान में यह नक्सलियों की शरणस्थली बनी हुई है. इस क्षेत्र में नक्सलियों का ‘कोयली बेड़ा दलम’ सक्रिय है. घाटी क्षेत्र में ‘खुरशैल नाला’ तट पर विविध वन्य प्राणी मिलते हैं, ‘नारायणपुर’ तहसील की इसी घाटी क्षेत्र में गुड़ाबेड़ा नामक स्थल से 9 किमी दूर गहन वन क्षेत्र में लगभग 400 फुट ऊँचा कई खण्डों में बँटा झरना स्थित है जिसे खुरशैल झरना कहते हैं. यह वैली एक सुंदर पर्यटन स्थल है. इस क्षेत्र में विपुल जैव विविधता विद्यमान है. यहाँ बाँस की अनेक प्रजातियाँ मिलती हैं, जो छत्तीसगढ़ में अन्यत्र नहीं मिलती हैं, साथ ही प्रदेश का सर्वश्रेष्ठ सागौन यहीं मिलता है,

अबूझमाड़

बस्तर के दक्षिण पश्चिम में अधिकतम 4 हजार एवं न्यूनतम 2 हजार फीट ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं का क्षेत्र “अबूझमाड़’ कहलाता है. अंडाकार भू भाग के उत्तरी वृत्त को शेष बस्तर से ‘इंद्रावती’ और माड़िन नदियाँ अलग करती हैं. लगभग 1500 वर्गमील में फैले क्षेत्र में वीजापुर, दंतेवाड़ा और नारायणपुर तहसीलें आती हैं. यहाँ जनसंख्या का घनत्व 10 व्यक्ति प्रति किलोमीटर है. इस क्षेत्र के ‘माड़िया’ जनजाति की जीवन पद्धति’ विश्व प्रसिद्ध है. ‘माड़ क्षेत्र’ जहाँ पहाड़ी ढलान से तराई में झरने नाले नदी अपनी राह बनाते हैं (भाभर जोन) वहीं झोपड़ियाँ बनाकर रहते लगभग पाषाणकालीन जीवन जीते माड़ियाओं का आज भी एक स्वतंत्र जीवन तंत्र है. शासन के प्रयासों से ये धीरे धीरे शिक्षित समाज से जुड़ रहे हैं, किन्तु आज भी यह क्षेत्र छत्तीसगढ़ का सबसे पिछड़ा क्षेत्र है. बेरियर एल्विन ने इस क्षेत्र पर विस्तृत शोध किया है.

Source : https://bastar.gov.in/tourist-place/

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