छत्तीसगढ़ पर्यटन : जिला बिलासपुर CGPSC 2021-22 | VYAPAM | POLICE SI | Latest General Awareness

छत्तीसगढ़ पर्यटन : बिलासपुर जिले के प्रमुख पर्यटन क्षेत्र [Tourism  in Bilaspur District]

रतनपुर (ऐतिहासिक, धार्मिक स्थल)-

विलासपुर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर बिलासपुर कटघोरा मार्ग पर ‘रतनपुर स्थित है. रतनपुर अनेक तालाबों और मंदिरों से युक्त प्राचीन धार्मिक नगरी है. प्राचीन ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण स्थल है. पहाड़ियों के बीच स्थित रतनपुर प्राचीन छत्तीसगढ़ की राजधानी’ रहा है. प्राकृतिक दृष्टि से उपयुक्त होने के कारण कल्चुरि राजाओं ने इसे अपनी राजधानी बनाया. कल्चुरि काल में यह सभी तरह की गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र था. इसे ‘रत्नदेव प्रथम’ ने बसाया था, जिसके कारण इसका नाम ‘रतनपुर’ पड़ा. दर्शनीय स्थलों में रतनपुर अपने प्राचीन वैभव के परिणामस्वरूप ऐतिहासिक, धार्मिक एवं पुरातात्विक महत्व के स्थल संजोये हुये है.

रतनपुर के अन्य नाम –

  • महाभारत काल / सतयुग – मणिपुर
  • त्रेतायुग – मणिकपुर
  • द्वापरयुग – हीरापुर
  • कल्चूरी काल में रत्नपुर एवं कुबेरपुर
  • वर्तमान / कलयुग में रतनपुर
  • अन्य नाम चतुर्युगीपुरी

पृथ्वीदेव प्रथम ने रतनपुर में विशाल तालाब का निर्माण कराया।

पृथ्वीदेव द्वितीय के शासनकाल में रतनपुर किले का निर्माण किया गया था।

और इनके ही शासनकाल में रतनपुर के खड़ग तालाब का निर्माण किया गया था।

महामाया का प्रख्यात मंदिर

नगर में ‘महामाया’ का प्रख्यात मंदिर स्थित है. इस मंदिर का निर्माण राजा रत्नदेव के द्वारा लगभग 11वीं शताब्दी में कराया गया था. मंदिर का सभागृह राजा बाहरसाय द्वारा शिल्पी छितक के द्वारा बनवाया गया था. मंदिर के गर्भगृह में देवी महामाया की प्रतिमा स्थापित है. महामाया आज भी जाग्रत सिद्ध शक्तिपीठ है. नवरात्रि के अवसर पर यहाँ मेला लगता है. इसके अलावा भैरव मंदिर, राम पंचायतन मंदिर (राम टेकरी), श्री वृद्धेश्वरनाथ मंदिर, श्री रत्नेश्वर महादेव, भुवनेश्वर महादेव, लखनी देवी मंदिर (इकबीर का मंदिर), कण्ठीदेऊल मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, मल्ली मकरबन्ध, रतनपुर का किला, सती चौरे, बीस दुवरिया (सती मंदिर), मूसा खाँ की दरगाह आदि पर्यटन स्थल भी दर्शनीय हैं.

खूटाघाट जलाशय (प्राकृतिक)-

बिलासपुर-कोरवा मार्ग पर 25 किमी दूरी पर, ‘रतनपुर’ से 8 किमी की दूरी पर, खूटाघाट (खारंग जलाशय) जलाशय स्थित है. यह जलाशय खारंग नदी पर बाँध बनाकर तैयार किया गया है. बाँध की अधिकतम ऊँचाई 21.3 मी एवं लम्बाई 495 मी है. इस बाँध का निर्माण सन् 1931 में पूर्ण हुआ. इससे दो मुख्य नहरें बायीं तट, दायीं तट सिंचाई हेतु निकाली गई हैं. जल संग्रह क्षमता 194 मिलियन घनमीटर है. यह जलाशय पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है, जो चारों ओर पहाड़ों से घिरा हुआ नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण है. समय समय पर जलाशय में नौकाचालन की व्यवस्था भी की जाती है.

भैरवबाबा मंदिर –

बिलासपुर से जाने पर महामाया मंदिर से पहले भैरवबाबा का मंदिर से गुजरते हुए जाना होता है।इस मंदिर परिषद् में छोटे -छोटे बहुत से मंदिर स्थित है दर्शन करने को मिलते है। भैरवबाबा मंदिर के पास ही एक तालाब है , तालाब के पास ही एक उद्यान है जिसमें शिवरूद्र की प्रतिमा , नटराज, अर्धनागेश्वर की प्रतिमा, और भी मुर्तियां स्थित है।

सिद्धि विनायक गणेश मंदिर –

भैरवबाबा मंदिर के आगे जाने पर यह मंदिर स्थित है बहुत ही सुन्दर और आकर्षक मंदिर है, जिसमें आप जाकर दर्शन कर सकते है आपको जरूर जाना चाहिए। जिसमें गणेश भगवान की प्रतिमा स्थापित है।

लखनी देवी मंदिर –

रतनपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थल ratnpur ke pramukh darshaniy sthal

सिद्धि विनायक मंदिर से आगे जाने पर लखनी देवी का मंदिर देखने को मिलता है। लखनी देवी मंदिर की पहाड़ी पर विशाल हनुमान भगवान की मुर्ति देखने को मिलता है। लखनी देवी की दर्शन करने के लिए कुल 259 सीढ़ीयों

से चलकर जाना होता है पहाड़ी से रतनपुर की दृश्य बहुत ही सुन्दर दिखाई देता है।

खो खो बवली –

रतनपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थल ratnpur ke pramukh darshaniy sthal

यहां सुरंग है और यह माना जाता है कि सुरंग बिलासपुर तक गया हैं।  जिस समय राजाओं का शासन था उस समय वहां के राजा इसी सुरंग से जाया करते थे । गुफा के अंदर जाने पर दो रास्ते मिलते है। जो बांयी ओर की रास्ता बिलासपुर की ओर जाता है ,दांयी ओर की रास्ता बादलमहल जाता है और जिस स्थान से दोनों ओर जाने का मार्ग है उसके ठीक सामने एक कुंआ है।

बादल महल –

बादल महल में घोड़ो को रखा जाता था। ऐसा माना जाता है कि रतनपुर के राजा की रानियां यहां पर रहती थीं। यह 5 मंजिल का महल था बादल महल के पास ही एक कुआ है जो खो खो बावली की सुरंग से मिला हुआ है विपरीत परिस्थिति में राजा सुरंग के माध्यम से यहां तक आते थे।

मूसे खां दरगाह –

रतनपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थल ratnpur ke pramukh darshaniy sthal

बदल महल से 1 किलो मीटर की दूरी पर मूसे खां दरगाह स्थित है। जिसका निर्माण कल्चुरि राजवंश के राजा राजसिंह ने कराया था। छत्तीसगढ़ में दुसरा सबसे बड़ा दरगाह है प्रथम स्थान पर लुथारासरीफ का है यह रतनपुर

की दर्शनीय पर्यटन स्थलों में बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह चारों ओर पहाड़ियों से घिरा हुआ ।

20 दरवाजों वाला मंदिर –

रतनपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थल ratnpur ke pramukh darshaniy sthal

यह मंदिर महामाया मंदिर से 2 किमी दूरी पर स्थित है। यहां 20 दरवाजें है यहां किसी प्रकार से कोई भागवान की प्रतिमा स्थापित नहीं की गयी है। यह ईटों और चूना पत्थर से निर्मित है।

मंचमुखी शिव मंदिर –

रतनपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थल ratnpur ke pramukh darshaniy sthal

इस मंदिर में शिवलिंग है। यह मंदिर मनौति मंदिर माना जाता है कि किसी प्रकार से मनोकामनाएं के लिए एक नारियल रखकर मनोकामना पूरा कर सकते है।

प्राचीन किला – 

महामाया मंदिर से आगे जाने पर प्राचीन किला देखने को मिलता है। कल्चुरि राजवंश के राजा पृथ्वीदेव द्वितीय के शासन काल में ही रतनपुर के प्राचीन किले का निर्माण हुआ था। इसे गज महल व हाथी महल भी कहा जाता है।

इस किले में कई प्राचीन काल की निर्मित मूर्तियां है, जिसमें रावण द्वारा शिव भगवान को सिर काटकर अर्पित करते हुए मूर्ति भी सम्मिलित है

जगन्नाथ मंदिर – 

रतनपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थल ratnpur ke pramukh darshaniy sthal

प्राचीन किले के अंदर जाने पर जगन्नाथ मंदिर का दर्शन करने को मिलता है ।

रामटेकरी मंदिर – 

इस मंदिर से रतनपुर की सौन्दर्य को अच्छी तरह से देखा जा सकता है।

गिरजाबंद हनुमान मंदिर – 

रतनपुर के प्रमुख दर्शनीय स्थल ratnpur ke pramukh darshaniy sthal

रामटेकरी मंदिर से नीचे जाने पर गिरजाबंद मंदिर देखने को मिलता है। इस मंदिर में हनुमान भगवान की प्रतिमा देखने को मिलता है । मंदिर परिषद् में हनुमान मंदिर के सामने में राम भगवान की प्रतिमा है। और पीछे में शनि देव की मंदिर

देखने को मिलता हैं।

पाली (ऐतिहासिक, पुरातात्विक)-

पाली, बिलासपुर जिलान्तर्गत बिलासपुर-अम्बिकापुर मार्ग में 55 किमी की दूरी पर स्थित पाली छत्तीसगढ़ के प्राचीन ऐतिहासिक स्थलों में एक महत्वपूर्ण स्थल है. यहाँ स्थित शिव मंदिर’ पुरातात्विक महत्व का है. एक हजार वर्ष पूर्व का यह प्राचीन शिवालय आज भी प्राचीन मूर्तिकला और इतिहास को अपने गर्भ में समेटे ‘पाली’ के बाहरी भाग में सरोवर के तट पर स्थित है.

खजुराहो, कोणार्क, भोरमदेव आदि मंदिरों की तरह दक्षिण कोसल की शैली में यहाँ ‘काम-कला’ का चित्रण मिलता है. यहाँ मिथुन मुद्राओं का चित्रण कलात्मकतापूर्वक किया गया है. पाली के इस शिव मंदिर का निर्माण ‘बाणवंशीय राजा प्रथम विक्रमादित्य’ जिसे ‘जयमेऊ’ भी कहा जाता है, के द्वारा कराया गया था जिनका शासनकाल दक्षिण कोसल पर सन् 870 से 895 ई. तक था. तत्पश्चात् इस मंदिर का जीर्णोद्धार कल्चुरीवंशीय जाजल्यदेव के समय हुआ था, क्योंकि मंदिर के तीन चार स्थानों पर ‘श्रीमज्जाजल्ल देवस्य कीर्तियम्’ खुदा हुआ है. प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर यहाँ मेला लगता है.

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लाफागढ़ (चैतुरगढ़) (ऐतिहासिक, पुरातात्विक)-

बिलासपुर से लगभग 45 किमी की दूरी पर तथा ‘बिलासपुर-कोरवा मार्ग’ पर स्थित ‘पाली’ से 15 किमी की दूरी पर लाफागढ़’ स्थित है, जोकि एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक और ऐतिहासिक स्थल है. गढ़ मंडला के गोंड राजा ‘संग्रामशाह’ के बावन गढ़ों की सूची में ‘लाफागढ़’ (चैतुरगढ़) सम्मिलित रहा है. 15-16वीं सदी ई. में गोंड़ों के साम्राज्य में इस गढ़ का राजनैतिक एवं सामरिक दृष्टि से विशेष महत्व था.

दुर्गम पर्वतमाला की समतल चोटी पर लगभग दो हजार फीट की ऊँचाई पर अवस्थित ‘लाफागढ़’ चैतुरगढ़ के नाम से जाना जाता है. यहाँ ‘चैतुरगढ़ का किला’ स्थित है, जिसकी ऊँचाई समुद्र सतह से 3240 फीट है. इस किले का निर्माण 14वीं शताब्दी में कल्चुरि शासक बाहरसाय के काल में करवाया गया था. इस किले को दुर्गमता तथा सुरक्षा की दृष्टि को देखकर अंग्रेज शासक ‘बेगलर’ ने कहा था कि “मैंने इससे दुर्गम तथा सुरक्षित किला नहीं देखा.”

किले के अंदर ‘महामाया देवी का मंदिर’ है. यहाँ प्रतिवर्ष ‘चैत्र’ एवं ‘क्वार’ की नवरात्रि के अवसर पर नौ दिनों का ‘मेला’ लगता है. किले के वायीं ओर तीन किमी की दूरी पर “शंकर खोला गुफा’ स्थित है. ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण लाफागढ़ का किला एक आकर्षक पर्यटन स्थल है.

गनियारी (ऐतिहासिक, पुरातात्विक)-

बिलासपुर से लगभग 20 किमी की दूरी में कोटा मार्ग पर ‘गनियारी’ स्थित है. यहाँ 12वीं शताब्दी का एक प्राचीन शिव मंदिर’ ‘देवर तालाब के किनारे भग्नावस्था में स्थित है, जो पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. वर्तमान में मंदिर का गर्भगृह ही शेष है. इसके अलावा यहाँ खुदाई में ।।वीं शताब्दी की अनेक मूतियाँ प्राप्त हुई हैं.

धनपुर (ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं धार्मिक)

प्राचीन नगर बिलासपुर से ‘बिलासपुर कटनी रेलमार्ग’ पर पेंड्रा रोड स्टेशन से 23 किमी की दूरी पर ‘धनपुर’ नामक प्राचीन ऐतिहासिक नगर है. ‘धनपुर’ जैन धर्मावलम्बियों का अंचल का सबसे बड़ा प्राचीन व्यवसायिक केन्द्र था. प्राचीनकाल में प्रमुख व्यापारिक पथ में होने के कारण ‘धनपुर’ जैन धर्मावलम्बियों के वैभवशाली नगर के रूप में प्रसिद्ध था. धनपुर में जैन धर्म के अलावा शैव धर्म से सम्बन्धित अवशेष भी प्राप्त हुए हैं.

धनपुर ग्राम में ऋषभनाथ तालाब स्थित है, जिसके समीप एक पेड़ के नीचे जैन तीर्थकर की प्रतिमा ‘ग्राम देवता’ के रूप में स्थापित है, जबकि बायीं ओर परकोटा खींचकर माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की गयी है, मंदिर परिसर में जैन धर्म से सम्बन्धित अनेक प्रतिमाएँ रखी हुई हैं. गाँव से लगभग 2-2 किमी दूर एक विशाल काली, किन्तु बलुई प्राकृतिक चट्टान में, जैन धर्म से सम्वन्धित एक विशाल प्रतिमा, अर्द्धगठित स्थिति में खुदी हुई है जिसे यहाँ के निवासी ‘बेनी वाई’ के नाम से जानते हैं. कार्योत्सर्ग मुद्रा में उत्कीर्णित तीर्थकर प्रतिमा लगभग 25 फुट ऊँची है. छत्तीसगढ़ अंचल में यही एकमात्र शैलोत्कीर्णित जैन- मूर्तिकला का उदाहरण है.

अचानकमार (वन्य प्राणी अभयारण्य)

यह अभयारण्य बिलासपुर से 58 किमी दूर विलासपुर पेंड्रा-अमरकण्टक मार्ग पर 551 वर्ग किमी वन क्षेत्र में विस्तृत है. घने साल वनों और विविध वन्य प्राणियों के वाहुल्य वाला क्षेत्र ‘अचानकमार अभयारण्य’ प्रकृति प्रेमियों एवं पर्यावरण संरक्षण से जुड़े लोगों के लिये महत्वपूर्ण स्थल है. अचानकमार’ को सन् 1975 में अभयारण्य घोषित किया गया. इस अभयारण्य में बाघ, तेन्दुआ, गौर, चीतल आदि वन्य प्राणियों के साथ अनेक विविध वन्य जीव पाये जाते हैं. पर्यटकों के ठहरने हेतु अचानकमार’ एवं ‘लमनी’ में विश्रामगृह उपलब्ध हैं. यहाँ बाघों की संख्या 31 है तथा अभयारण्य में दुर्लभ ‘माउस डीयर’ पाया जाता है

Source : bilaspur.gov.in

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